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हमारे बाला साहब- दत्तोपंत ठेंगड़ी प. पू. बालासाहब के

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  Dattopant Thengadi हमारे बाला साहब दत्तोपंत ठेंगड़ी  प. पू. बालासाहब के साथ कई दशको तक घनिष्ठ संबंध रहा । ऐसे मेरे जैसे व्यक्ति के लिये आज के इस अवसर पर कुछ भी बोलना कितना कठिन है इसकी कल्पना आप कर सकते है । शायद यदि किसी को कल्पना न होगी तो अपनी भावनाओं के बारे में हमारे मान्यवर जगजीत सिंह जी ने जो बताया कि प्रगट करना बहुत कठिन हो जाता है । उसी का अनुभव मैं ले रहा हूँ । जैसा कहा गया कि खामोश गुप्तगूं है “आज बेजुबाँ है जबाँ मेरी” हम में से बहुत सारे लोगों की अवस्था इस समय एसी ही होगी, ऐसा में समझता हूँ । किन्तु एक कर्तव्य के नाते इस समय पर कुछ बोलना है इसी नाते बोलने का साहस कर रहा हूँ । यह मासिक स्मृति दिन मनाया जा रहा है । मा. सरकार्यवाह श्री. शेषाद्री जी के आदेश के अनुसार ‘सामाजिक समरसता’ दिन इस नाते इसको हम मना रहे है । बालासाहेब का पूरा जीवन हमारे सामने है । His life was an open book कई नेताओं का जीवन इतना open नही रहता । बालासाहब का जीवन open book जैसा जीवन रहा । जीवन के अंतिम चरण में विकलांग अवस्था के कारण उनको कितनी असुविधा बर्दाश्त करनी पडी, कष्ट बर्दाश्त करने पडे, ...

समरसता संवाद और राष्ट्र-तपस्या के शिल्पी डॉ. इंद्रेश कुमार

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 समरसता संवाद और राष्ट्र-तपस्या के शिल्पी डॉ. इंद्रेश कुमार  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) केवल एक संगठन नहीं, बल्कि व्यक्ति निर्माण की एक अनवरत चलने वाली कार्यशाला है। इस कार्यशाला से निकले अनगिनत तपस्वियों में एक प्रमुख नाम इंद्रेश कुमार जी का है। उनका जीवन एक ऐसी यात्रा है जहाँ निजी महत्त्वाकांक्षाओं का पूर्ण विसर्जन है और राष्ट्रहित सर्वोपरि है। इस फलक पर उनके जीवन के त्याग और तपस्या के पहलुओं को समझना वास्तव में आधुनिक भारत के एक कर्मयोगी को समझने जैसा है। त्याग की पृष्ठभूमि,वैभव से वैराग्य तक इंद्रेश जी का जन्म हरियाणा के कैथल में हुआ था। एक मेधावी छात्र के रूप में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। उस समय,एक इंजीनियर के लिए करियर के असीमित अवसर थे, सुख-सुविधाओं भरा जीवन था और समाज में प्रतिष्ठा थी। लेकिन उनके भीतर राष्ट्र के प्रति कुछ बड़ा करने की तड़प थी। उन्होंने अपने कैरियर और पारिवारिक सुखों का मोह त्यागकर संघ के 'प्रचारक' के रूप में जीवन जीने का कठिन निर्णय लिया। प्रचारक बनने का अर्थ है—अपना कोई घर न होना,कोई बैंक बैलेंस न होना और पूरा जीवन समाज के चरण...

RSS के भगीरथ, लुप्त सरस्वती की खोज में इन दो स्वयंसेवकों का रहा बड़ा योगदान

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 RSS के भगीरथ, लुप्त सरस्वती की खोज में इन दो स्वयंसेवकों का रहा बड़ा योगदान सरस्वती का उदगम, उसका प्रवाह भारतीय जनमानस को आकर्षित करता रहा है. कुछ स्वयंसेवकों ने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित पवित्र सरस्वती नदी की खोज में दिलचस्पी दिखाई. जिस सरस्वती को संगम में लुप्त बताया जाता रहा है, वो उसके प्रवाह का रास्ता जानना चाहते थे. इस काम में मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले और दर्शन लाल जैन ने भगीरथ कोशिश की. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्षों के इतिहास में हजारों ऐसे मेधावी प्रचारक व स्वयंसेवक संगठन जुड़े, जिनकी मेधा को बड़े अभियान नहीं मिलते तो शायद उनकी प्रतिभा के साथ अन्याय होता. ऐसे में सरसंघचालकों के पास हमेशा से ये जिम्मेदारी रही कि बड़े अभियानों, संकल्पों के लिए एकनाथ रानाडे जैसे मेधावी कर्मवीर ढूंढना और कभी कभी मेधावियों के लिए उतने बड़े संकल्प तय करना. कुछ स्वयंसेवक ऐसे भी जुड़े जो इतिहास व पुरातत्व के क्षेत्र में काम करना चाहते थे. उनको ये तो समझ आ गया था कि लगातार उनके इतिहास को तोड़मरोड़ के एजेंडे के तहत पढ़ाया गया है, लेकिन उनके प्राचानी ग्रंथों व शास्त्रों में कुछ और ही वर्णित है....