कर्मचारी को आपराधिक मामले में समान साक्ष्य के आधार पर बरी कर दिया गया हो तो अनुशासनात्मक कार्रवाई बरकरार नहीं रखी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट


 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब आपराधिक कार्यवाही और अनुशासनात्मक कार्यवाही में आरोप, साक्ष्य, गवाह और परिस्थितियां समान या काफी हद तक समान हों और जब किसी आरोपी को आपराधिक कार्यवाही में सभी आरोपों से बरी कर दिया जाता है तो अनुशासनात्मक कार्यवाही में निष्कर्षों को बरकरार रखना "अन्यायपूर्ण, अनुचित और दमनकारी" होगा। न्यायालय ने कहा, "जबकि आपराधिक मामले में बरी होने से अभियुक्त को अनुशासनात्मक कार्यवाही के बाद सार्वजनिक सेवा से उसकी बर्खास्तगी को रद्द करने का आदेश स्वतः प्राप्त करने का अधिकार नहीं मिल जाता है, यह अच्छी तरह से स्थापित है कि जब विभागीय जांच और आपराधिक कार्यवाही दोनों में आरोप, साक्ष्य, गवाह और परिस्थितियां समान या काफी हद तक समान होती हैं तो स्थिति एक अलग संदर्भ ग्रहण करती है। ऐसे मामलों में अनुशासनात्मक कार्यवाही में निष्कर्षों को बरकरार रखना अन्यायपूर्ण, अनुचित और दमनकारी होगा। 


यह स्थिति जी.एम. टैंक (सुप्रा) के निर्णय द्वारा तय की गई, जिसे राम लाल बनाम राजस्थान राज्य के हाल ही के निर्णय द्वारा पुष्ट किया गया।"

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