मेरे घर में झाड़ू-पोंछे का काम करती थी सुगनी.पति की मृत्यु हो गई थी.घर में उसका बेटा था-उम्र यही कोई पन्द्रह साल.बेहद गरीबी में बड़ी मुश्किल से वह अपना और अपने बेटे का पेट भर पाती थी.
इसी बीच मेरे पति का स्थानान्तरण,दक्षिण में केरल के तिरुवंतपुरम् में हो गया था.
मैं भी अपने पति के साथ वहीं चली गई.दस साल बाद जब मेरे पति रिटायर हुए,तब हम लोग वापिस अपने पुराने शहर,पुराने घर में आ गये.
पुरानी स्मृतियाँ सजीव हो उठी.उसमें सुगनी की स्मृति भी थी.मैं छत पर चली गई,क्योंकि वहाँ से, जिस बस्ती में सुगनी रहती थी,उसकी झोपड़ी पूरी तरह से दिखाई पड़ती थी, पर मैं तो आश्चर्य चकित रह गई,वहाँ पर उसकी झोपड़ी की जगह,एक नया,एक मंजिला मकान बना हुआ था.और मकान के आँगन में एक चमचमाती हुई मोटर साइकल खड़ी थी.
मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पायी,और पहुँच गयी सुगनी के घर.दरवाजा सुगुनी ने ही खोला और मुझे झट् पहचान लिया.मेरे चरण-स्पर्श करते हुए बोली-"अरे मैडम जी आप!! आज इतने सालों बाद?" मैंने उसे अपने पति के रिटायरमेंट के बारे में बताया.पर मैं अपनी उत्सुकता पर नियंत्रण न रख सकी और पूछ बैठी सुगनी से उसकी संपन्नता का राज.
"मैडम जी, ये सारा कमाल तो मेरे 'इटूबर' बेटे राकेश का है." उसने गदगद होते हुए कहा. मैं समझ गयी कि 'इटूबर' से उसका तात्पर्य 'यूट्यूबर'है .मैंने उसके बेटे से मिलने की इच्छा जताई.उसने अपने बेटे राकेश को बुलाया.राकेश आया और वह मुझे नमस्कार कहकर मेरे सामने बैठ गया.
पहिले तो वह संकोच से ना-नुकर करता रहा,पर अपनी माँ सुगनी के जोर देने पर वह मुझे अपनी कहानी सुनाने लगा-
"आज से सात साल पहिले अम्मा को टीबी हो गई थी.उनके बीमार होने से उनका काम छूट गया.अब घर में कमाने वाला कोई नहीं.मैं उस समय बारहवीं कक्षा में था.अम्मा की बीमारी के कारण मुझे बारहवीं पास करके पढ़ाई छोड़नी पड़ी.अब मात्र बारहवीं पास,जिस को कोई अनुभव नहीं था,उसे कौन नौकरी देता.पड़ौसियों के आगे हाथ जोड़कर,गिड़गिड़ाकर,विनती करने से उन्होंने मुझे एक सेठ के किराने की दुकान पर नौकरी लगा दी.वहाँ पर मुझे महीने में सिर्फ चार हजार रु मिलते.इन चार हजार रुपयों में मुझे
अम्मा का
इलाज भी करवाना था,अपना और अम्मा का पेट भी भरना था.
मुझे रात-रात भर नींद नहीं आती थी,मैं रोता,बिलखता,छटपटाता.मैं भगवान को कोसता कि उसने मुझे गरीब क्यों बनाया."ऐसा कहते हुए उसकी आँखों में से आँसू बहने लगे.उसकी दर्द भरी दास्तान सुनकर मेरी आँखें भी नम हो गईं.
थोड़ी देर लगी उसे संयत होने में.वह फिर आगे बोला-"जिस दुकान में,मैं काम करता था,वहाँ पर सभी लोगों के पास स्मार्ट फोन था,सिर्फ मुझे छोड़कर.खाली समय में वे लोग व्हॉट्स एप पर चैटिंग करते,यू-ट्यूब पर गाने सुनते.उन्हें देखकर मेरी भी इच्छा होती कि काश!!! मेरे पास भी स्मार्ट फोन होता, पर गरीबी के कारण मन मसोसकर रह जाता."
राकेश ने मेरी तरफ देखा,मुझे अपनी बात ध्यान से सुनते देख,उसने आगे कहा-"मेरी मेहनत और ईमानदारी को देखकर सेठ जी ने मेरी तनख्वाह बढ़ा दी.तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया,और मैंने किश्तों पर स्मार्ट फोन खरीद लिया."अपनी नादानी भरी बात पर वह स्वयं ही धीरे से मुस्करा दिया.
फिर बोला-"एक दिन यूँ ही मैं यूट्यूब पर नयी फिल्म के गाने देख रहा था.तभी संयोगवश् मेरी निगाह एक यू-टयूब वीडियो पर पड़ी,जिसका शीर्षक था-"यू-ट्यूब से पैसे कैसे कमायें?"ये वीडियो देखकर मेरी आँखों में तो चमक आ गयी.मैंने उसे ध्यान से देखा.स्टेप बाय स्टेप उसे समझा.और अपना एक यू-टयूब चैनल 'हमारे मंदिर' बनाया.
दूसरे दिन सुबह-सुबह उठकर मैं शहर के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में पहुँचा.वहाँ हनुमान जी की भव्य मूर्ति,मंदिर के इतिहास के बारे में पुजारी जी के साक्षात्कार का मैंने अपनी स्मार्ट फोन से वीडियो बनाया.और इस वीडियो को मैंने अपने यू-ट्यूब चैनल 'हमारे मंदिर' में अपलोड कर दिया.
मैं दुकान से छुट्टी वाले दिन,कभी शहर के माँ दुर्गा,कभी गणेश भगवान, तो कभी साईं बाबा,बालाजी के भव्य मंदिरों के वीडियो बनाकर अपने यू-ट्यूब चैनल में अपलोड करता.
और इस यू-ट्यूब चैनल को देखने का आग्रह मैंने व्हाट्स अप पर अपने दोस्तों से, अपने पड़़ोसियों से किया.और किराने की दुकान ,जिस में मैं काम करता था,वहाँ पर मैंने एक बहुत बड़े कागज़ में लिखकर उसे चिपका दिया,जिसे देखकर,दुकान में आने वाले
ग्राहक इसे देखकर मेरे यू-ट्यूूब चैनल-'हमारे मंदिर' को देखें,उसे लाइक करें और इसे सब्सक्राइब करें."
तभी सुगुनी चाय लायी.और हम दोनों ने चाय पी.मेरी उत्सुकता चरम सीमा पर थी.मैंने उससे आगे और बताने का आग्रह किया.
उसने आगे अपनी बात बताते हुए कहा-"गणपति उत्सव के दिनों में तो रात को दुकान से छुट्टी होने पर मैं साईकल से जाता और एक दिन में कम से कम दस गणपति पंडालों में विराजमान गणेश भगवान की मूर्तियों के वीडियो बनाकर उसे अपने यू-ट्यूब चैनल में अपलोड कर दिया.मेरे चैनल को मुश्किल से तीन सौ से चार सौ व्यूज़(Views) मिलते थे,अचानक से एक हज़ार व्यूज़ मिल गये,लोगों को घर बैठे गणेश भगवान के विभिन्न रुपों के दर्शन जो हो रहे थे."
"ये व्यूज़ क्या होता है"? ये मेरा प्रश्न था.
"जितने दर्शक (Viewers) किसी यू-ट्यूब वीडियो को देखते हैं,उसे व्यूज़(Views) कहते हैं."उसने मेरी शंका का समाधान करते उत्तर दिया
.फिर आगे बोला-"एक हजार व्यूज़ आने से अब मेरे पास पैसा आने लगा.मेरा उत्साह बढ़ा.अब मैंने अपने शहर के अलावा दूसरे शहरों के प्रसिद्ध
मंदिरों के भी वीडियों बनाकर,अपने यू-ट्यूब चैनल में अपलोड करने लगा.खूब मेहनत करता.कभी-कभी तो रात में सिर्फ दो घंटे ही सोता.क्योंकि सुबह सेठजी की दुकान पर भी काम करने जाना पड़ता." उसने अपने सामने रखे गिलास में से पानी के कुछ घूंट पिये और अपने सूखे गले को तर कर बोला-"धीरे-धीरे मेरा यू-ट्यूब
चैनल 'हमारे मंदिर' लोकप्रिय होता गया.उस के परिणाम स्वरुप मेरे चैनल के व्यूज़ की गिनती भी बढ़ गई,और साथ ही साथ मेरी कमाई भी."
"अब तुम यू-ट्यूब से कितना कमा लेते हो?" ये मेरा प्रश्न था.
"करीब साठ से पैंसठ हजार रुपये प्रति माह.इन्हीं रुपयों से मैंने अम्मा का ईलाज़ करवाया.घर बनवाया,और मोटर साइकल भी खरीदी."
उसने बड़ी विनम्रता से मुस्कराते हुए उत्तर दिया.
साँझ हो चली थी.मेरा भी अपने घर में दिया-बाती करने का समय हो चुका था,मैं चलने के लिये उठ खड़ी हुई.
राकेश ने मेरे चरण-स्पर्श करते हुए कहा-"आप मेरे सिर पर दुआ का हाथ रख दीजिये,जिससे कि मैं भविष्य में और भी अधिक उन्नति कर सकूँ."
मैं उसे ढेरों आशीर्वाद देते हुए उठी और चल पड़ी अपने घर की ओर.घर वापिस जाते हुए रास्ते में मेरे दिमाग में यही बात आ रही थी कि किसी ने ठीक ही कहा है-'गरीब घर में पैदा होना अभिशाप नहीं,पर गरीबी में जीना अभिशाप है.'राकेश ने गरीब घर में जन्म तो लिया था,पर अपनी कड़ी मेहनत,ईमानदारी और लगन से गरीबी के अभिशाप से हमेशा के लिये मुक्ति पा ली थी.
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