कोर्ट में झूठी गवाही देने वाले को मिलती है सजा

 कोर्ट में झूठी गवाही देने वाले को मिलती है सजा



दबाव या लालच में दी गई झूठी गवाही एक गंभीर अपराध है और इसके लिए सजा मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी को झूठी गवाही देने के लिए धमकाता है, तो उसे भी सजा मिल सकती है।

झूठी गवाही देने के लिए सजा:

आईपीसी धारा 193:

किसी न्यायिक कार्यवाही में जानबूझकर झूठी गवाही देना या ऐसा साक्ष्य तैयार करना जो गलत हो, दंडनीय है। सजा में 7 साल तक की कैद और जुर्माना शामिल हो सकता है। 

आईपीसी धारा 195A:

किसी व्यक्ति को झूठी गवाही देने के लिए धमकाना भी दंडनीय है। सजा में 7 साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। 

झूठी गवाही के प्रभाव:

1- झूठी गवाही से निर्दोष व्यक्ति को सजा हो सकती है या दोषी व्यक्ति को सजा से मुक्ति मिल सकती है।

2- यह न्याय प्रणाली को कमजोर करता है और लोगों का विश्वास खो सकता है।

उदाहरण:

1- अगर कोई गवाह अदालत में शपथ लेकर झूठी गवाही देता है, तो उसे आईपीसी धारा 193 के तहत सजा मिल सकती है। 

2- अगर कोई व्यक्ति किसी को झूठी गवाही देने के लिए धमकाता है, तो उसे आईपीसी धारा 195A के तहत सजा मिल सकती है। 

निष्कर्ष:

झूठी गवाही देना एक गंभीर अपराध है, और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए, हमेशा सत्य बोलना चाहिए और झूठी गवाही से बचना चाहिए।

विस्तार से जाने 

कोर्ट में झूठी गवाही देने वाले को मिलती है सजा

क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में गवाहों का रोल अहम है। जैसे ही किसी मामले में आरोप तय हो जाते हैं, उसके बाद अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं। कई बार ऐसे भी मामले देखने को मिलते हैं, जब गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं। उस वक्त कोर्ट यह देखता है कि गवाह झूठ तो नहीं बोल रहा है। अगर कोर्ट को लगता है कि गवाह ने शपथ लेकर झूठे बयान दर्ज कराए हैं तो अदालत ऐसे गवाह के खिलाफ एक्शन लेने का आदेश दे सकती है।

कानूनी जानकार मुरारी तिवारी बताते हैं कि मुकरने वाले गवाह का मतलब होता है अदालत के सामने पुलिस की कहानी को सपोर्ट न करने वाला गवाह। अदालत में शपथ लेकर झूठ बोलने के मामले में दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है। जब पुलिस किसी क्रिमिनल केस को दर्ज करती है तो उसके बाद वह छानबीन शुरू करती है और इस दौरान वह गवाहों के बयान दर्ज करती है। उन गवाहों के बयान और साक्ष्य के आधार पर पुलिस छानबीन पूरी करने के बाद चार्जशीट दाखिल करती है। फिर चार्ज पर बहस होती है। अगर पहली नजर में आरोप पुख्ता हैं तो अदालत आरोपी के खिलाफ चार्ज फ्रेम कर देती है और ट्रायल शुरू होता है। इस दौरान पहले अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं। छानबीन के दौरान जांच एजेंसी या पुलिस जिसे चाहे अभियोजन पक्ष का गवाह बना सकती है।

शपथ लेकर बयान

पुलिस सीआरपीसी की धारा-161 के तहत उक्त गवाह के बयान दर्ज कर सकती है और उसका पता आदि लिखती है। साथ ही गवाह को यह बताती है कि उसे कोर्ट से समन मिलने पर गवाही के लिए आना होगा, हालांकि उक्त बयान पर गवाह के दस्तखत नहीं होते। पुलिस को जब गवाह पर यह शक हो कि वह अपने बयान से मुकर सकता है तो वह गवाह का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने भी करवाती है। मैजिस्ट्रेट के सामने धारा-164 के तहत बयान दर्ज किए जाते हैं। बयान के वक्त मैजिस्ट्रेट गवाह से पूछता है कि उस पर कोई दबाव तो नहीं है। गवाह जब बताता है कि वह अपनी मर्जी से बयान दे रहा है, तब मैजिस्ट्रेट उसे दर्ज करता है।

कई बार ट्रायल के दौरान गवाह आरोप लगाता है कि पुलिस ने जबरन बयान दर्ज किया है और उसने उक्त बयान नहीं दिए थे, लेकिन मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान से उसके लिए मुकरना आसान नहीं होता। हाई कोर्ट के सरकारी वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि धारा-161 या 164 के बयान के बावजूद ट्रायल कोर्ट के सामने गवाह जो बयान देता है, वही बयान आखिरी होता है। ट्रायल कोर्ट में बयान के वक्त गवाह को शपथ लेना होता है और फिर वह बयान दर्ज कराता है। अगर अदालत को लगता है कि गवाह सच बोल रहा है और बयान पुलिस के सामने दिए बयान से पूरी तरह न भी मिलता हो, तो भी उसके बयान के उस पार्ट को स्वीकार किया जाता है जो अभियोजन पक्ष के फेवर में है।

झूठ बोलने पर सजा

एडवोकेट अजय दिग्पाल बताते हैं कि अगर कोई अभियोजन पक्ष यानी सरकारी गवाह पुलिस और मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान से मुकरे तो अभियोजन पक्ष के वकील उसके साथ जिरह करते हैं और जिरह के दौरान सच्चाई सामने लाने की कोशिश करते हैं। इस दौरान उक्त गवाह को मुकरा हुआ गवाह करार दिया जाता है। इसका मतलब हमेशा यह नहीं है कि गवाह झूठ बोल रहा है। कई बार पुलिस गलत तरीके से बयान दर्ज कर लेती है और तब गवाह पुलिस द्वारा लिखे गए बयान से अलग बयान देता है। लेकिन बयान और साक्ष्य देखकर अदालत यह देखती है कि गवाह शपथ लेकर झूठ तो नहीं बोल रहा है। अगर अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि गवाह ने शपथ लेकर झूठ बोला है तो ऐसे गवाहों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा-340 के तहत अदालत शिकायत कर सकती है। ऐसे गवाह के खिलाफ अदालत में झूठा बयान देने के मामले में आईपीसी की धारा-193 के तहत मुकदमा चलाया जाता है। इसमें दोषी पाए जाने पर 7 साल तक कैद की सजा हो सकती है।


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