आरएसएस के वे 5 चेहरे, जो तय करते हैं आर्थिक नीति

 





आरएसएस के वे 5 चेहरे, जो तय करते हैं आर्थिक नीति 



 देश के आर्थिक मुद्दों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का क्या दृष्टिकोण होना चाहिए, यह तय करने में पांच प्रमुख चेहरे अहम भूमिका निभाते हैं। ये वे चेहरे हैं जो आदर्शवाद (आइडियलिज्म) और यथार्थवाद (रियलिज्म) के बीच की नीतियां बनाने में यकीन रखते हैं, ताकि मोदी सरकार में संघ का उस तरह से टकराव न हो, जिस तरह से कभी वाजपेयी सरकार के जमाने में होता था। संघ से जुड़े सूत्रों का तो कुछ ऐसा ही कहना है। 


ये चेहरे तय करते हैं संघ का आर्थिक ²ष्टिकोण :


सुरेश सोनी : आरएसएस में सह सर कार्यवाह (ज्वाइंट सेक्रेटरी) सुरेश सोनी अर्थशास्त्र पर अच्छी पकड़ रखते हैं और इस विषय पर किताब भी लिख चुके हैं। संघ सूत्रों का कहना है कि आर्थिक क्षेत्र में काम करने वाला स्वदेशी जागरण मंच, लघु उद्योग भारती के पदाधिकारी सुरेश सोनी को रिपोर्ट करते हैं।


बजरंग लाल गुप्ता : आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक बजरंग लाल गुप्ता अर्थशास्त्री भी हैं। अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं। संघ में इस वक्त उत्तर क्षेत्र संघचालक के तौर पर काम कर रहे बजरंग लाल गुप्ता ने भारत का आर्थिक इतिहास, हिंदू अर्थ चिंतन आदि पुस्तकें लिखकर भारतीय आर्थिक मॉडल पर जोर देते रहे हैं।


संघ सूत्रों ने  बताया कि बजरंग लाल गुप्ता संघ का आर्थिक मुद्दों पर राय तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। गुप्ता संघ के ऐसे वरिष्ठ पदाधिकारी हैं, जिनकी दिल्ली में खास सक्रियता रहती है। 2018 में जब दिल्ली में संघ ने भविष्य का भारत कैसा हो नामक तीन दिनों का कार्यक्रम किया था, तब संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ मंच पर बजरंग लाल गुप्ता मौजूद रहे थे।


एस. गुरुमूर्ति : ये आर्थिक मामलों में संघ का दृष्टिकोण तय करने वाले पुराने चेहरों में गिने जाते हैं। एस. गुरुमूर्ति वही शख्स हैं, जिन्हें संघ और सरकार में जबर्दस्त पैठ के कारण 2018 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का बोर्ड मेंबर बनाया गया था। पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट एस. गुरुमूर्ति संघ और सरकार दोनों के करीबी माने जाते हैं। वह अतीत में संघ के सहयोगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच के लिए भी काम कर चुके हैं।


उदयराव पटवर्धन : संघ के आर्थिक चिंतकों में उदयराव पटवर्धन भी हैं। भारतीय मजदूर संघ में दो दशक से भी ज्यादा समय तक संगठन मंत्री रहे हैं। आर्थिक मामलों पर संघ को सुझाव देते रहते हैं।


गोविंद लेले : लघु उद्योग भारती के संगठन मंत्री गोविंद लेले समय-समय पर सरकार को भी सुझाव देते हैं।


नागपुर में रहने वाले संघ विचारक दिलीप देवधर ने  एक दिलचस्प बात बताई। उनका कहना है कि आज भी बतौर विचारक के.एन. गोविंदाचार्य संघ के लिए उपयोगी बने हुए हैं। गोविंदाचार्य के अनुभवों का संघ आज भी लाभ लेता है। संघ के स्वदेशी आर्थिक चिंतन में गोविंदाचार्य के इनपुट शामिल रहते हैं। अब वह पहले की तरह सक्रिय नहीं हैं, मगर उनके लिए संघ में विशेष व्यवस्था है और वह सीधे संघ प्रमुख को रिपोर्ट करते हैं।


वाजपेयी सरकार का आर्थिक मुद्दों पर होता था संघ से टकराव :


संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वाजपेयी सरकार के जमाने में यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह ने मिलकर प्रो-कैपिटलिस्ट और प्रो-सोशलिस्ट इकोनॉमिक मॉडल पर जोर दिया जाता था। जबकि संघ विचारक और भाजपा के तत्कालीन संगठन महासचिव गोविंदाचार्य और संघ के वरिष्ठ नेता दत्तोपंत ठेंगड़ी का मानना था कि सरकार भारतीय परिवेश के हिसाब से अर्थव्यवस्था का अपना अलग मॉडल बनाकर काम करे, न कि पश्चिमी देशों के इकोनॉमिक मॉडल की नकल करे। संघ से जुड़े दोनों आर्थिक चिंतकों का मानना था कि स्वदेशी मॉडल से ही घरेलू उद्योगों का भला होगा। वाजपेयी सरकार की विनिवेश आदि नीतियों पर संघ के कड़े दृष्टिकोण से कई बार टकराव होता था।


हालांकि संघ विचारक दिलीप देवधर आईएएनएस से कहते हैं कि संघ आर्थिक मामलों में अब मोदी सरकार पर ज्यादा दबाव नहीं डालता। वजह यह कि संघ स्वदेशी चिंतन को लेकर काफी उदार हुआ है और वह वैश्विक बाजार के दौर में सरकार की मजबूरियां समझकर आर्थिक मुद्दों पर ज्यादा कठोर नहीं बनता। मोदी सरकार जहां सुझाव मानना होता है मानती है, नहीं तो नहीं।


क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसेप) के मुद्दे पर जब लगा कि इससे घरेलू उद्योगों को खतरा है, तब संघ का सुझाव मानते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कदम पीछे खींच लिए थे।



 

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