सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल जिन्होंने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपने जलते टैंक से पाकिस्तान के 4 टैंक ध्वस्त किए
ये हैं सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल जिन्होंने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपने जलते टैंक से पाकिस्तान के 4 टैंक ध्वस्त किए और 16 दिसंबर, 1971 को मात्र 21 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हुए।
1971 युद्ध में पाकिस्तान के 13 लांसर्स ने अटैक किया. 13 लांसर्स के पास अमेरिकी मेड 50 टन के पैटन टैंक थे. वहीं दूसरी तरफ 17 पूना हॉर्स के पास वर्ल्ड वॉर के जमाने के ब्रिटिश मेड सेंचुरियन टैंक थे.17 पूना हॉर्स की A और B दो स्वाड्रन थीं. लांसर्स ने B स्क्वाड्रन पर हमला किया तो उन्होंने A स्क्वाड्रन से मदद की गुहार की. A स्क्वाड्रन के टैंक मदद के लिए आगे बढ़े. इनमें से एक पर अरुण खेत्रपाल सवार थे. कई घंटे चली भीषण लड़ाई में B स्क्वाड्रन ने पाकिस्तान के 7 टैंक उड़ा दिए. अरुण खेत्रपाल के टैंक पर भी एक गोला लगा. जिससे उनके टैंक में आग लग गई . उनके सीनियर ने उन्हें टैंक छोड़ने का आदेश दिया. लेकिन अरुण तैयार नहीं हुए. उन्होंने रेडियो से सन्देश भेजा,
"No, Sir, I will not abandon my tank. My main gun is still working and I will get these bastards. यानी,
“सर मैं टैंक नहीं छोडूंगा. मेरी मेन बन्दूक अभी भी काम कर रही है”
अरुण खेत्रपाल का ये आख़िरी मेसेज था. इसके बाद उनका रेडियो बंद हो गया. जलते हुए टैंक से ही उन्होंने पाकिस्तान के चार टैंक उड़ाए और वहीं डटे रहे. उनके सामने अब सिर्फ एक पाकिस्तानी टैंक बचा था. जिस पर सवार थे लेफ्टिनेंट नासेर. दोनों टैंकों की बीच कुछ 200 मीटर की दूरी थी. दोनों टैंकों ने बिना देरी किए एक साथ, एक दूसरे की ओर फायर कर दिया।
कई साल बाद, साल 2001 में शहीद अरुण खेत्रपाल के पिता ब्रिगेडियर खेत्रपाल पाकिस्तान गए तो वहां उनकी मुलाक़ात ब्रिगेडियर नासेर से हुई. तब नासेर ने उन्हें अपने नजरिए से बताया कि उस रोज़ क्या हुआ था. ब्रिगेडियर नासेर ने बताया कि उस रोज़ अरुण चट्टान की तरह पाकिस्तानी टैंक के आगे खड़े हो गए थे. आख़िरी लड़ाई उनके और नासेर के बीच हुई थी. नासेर और अरुण दोनों ने एक दूसरे पर गोली चलाई. गोली दोनों टैंकों को लगी लेकिन नासेर ठीक समय पर टैंक से कूद गए. वहीं अरुण टैंक में फंसे रह गए. उनके पेट में गहरा घाव हुआ था. जिसके कारण उनकी वहीं मृत्यु हो गयी.
नासेर ने कहा,
“आपका बेटा बड़ा बहादुर था. हमारी हार के लिए वो अकेले जिम्मेदार थे.”
जब नासेर ने ये कहानी सुनाई तो ब्रिगेडियर खेत्रपाल ने उनसे पूछा, आपको कैसे पता, टैंक में अरुण था?
नासेर ने बताया कि युद्ध विराम के बाद वो अपने जवानों के मृत शरीर लेने वहां गए थे. तब उन्होंने देखा कि भारतीय सैनिक उस टैंक के पुर्जे इकठ्ठा कर रहे हैं, जिससे एकदिन पहले ही उनकी मुठभेड़ हुई थी. नासेर उत्सुक थे, ये जानने के लिए कि इतनी बहादुरी से लड़ने वाला वो आदमी था कौन. उन्होंने भारतीय सैनिकों से पूछा, तो पता चला कि वो सेकेण्ड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का टैंक था.
नासेर ने उनसे कहा,
“बड़ी बहादुरी से लड़े आपके साहब. चोट तो नहीं आई उन्हें?”
तब नासेर को एक सैनिक ने बताया, “साहब शहीद हो गए”. नासेर को बाद में खबरों से पता चला था कि अरुण खेत्रपाल की उम्र तब सिर्फ 21 साल थी. ये पूरी कहानी सुनाने के बाद ब्रिगेडियर नासेर का सर नीचे झुक गया. ब्रिगेडियर खेत्रपाल से नजरें छुपाकर वो लॉन की घास को देखने लगे. ब्रिगेडियर खेत्रपाल भी कुछ देर अपनी जगह पर बैठे रहे. दोनों ने एक दूसरे से कुछ न कहा. अंतहीन से लग रह रहा एक मिनट बड़ी मुश्किल से बीता. ब्रिगेडियर खेत्रपाल खड़े हुए. उन्होंने नासेर की तरफ देखा. और इससे पहले कि उनकी आंखों से आंसू टपकता, नासेर को खींचकर अपने गले से लगा लिया।



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