झूठे सबूत की बीएनएस धारा 229 में सजा और जमानत
झूठे सबूत की बीएनएस धारा 229 में सजा और जमानत
झूठे साक्ष्य देने की बीएनएस धारा 229
आज के बदलते दौर में ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं जहां लोग अपने फायदे के लिए झूठे सबूतों का सहारा लेकर दूसरों को फंसा देते है। झूठी गवाही, फर्जी दस्तावेज, और गलत बयानों के चलते कई बार निर्दोष लोगों को सजा हो जाती है, जबकि दोषी लोग बच निकलते हैं। इससे न केवल पीड़ितों के साथ अन्याय होता है, बल्कि लोगों का न्याय व्यवस्था पर से विश्वास भी उठने लगता है। ऐसे ही मामलों से निपटने के लिए धारा 229 बनाई गई है, जिसके बारे में जानना हर नागरिक के लिए बेहद जरूरी है। यह न केवल आपको झूठे सबूतों के इस्तेमाल से पैदा होने वाले खतरों से बचाती है, बल्कि आपको अपनी कानूनी जिम्मेदारियों का भी एहसास कराती है।आज के इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि, बीएनएस की धारा 229 क्या है (BNS Section 229 in Hindi)? धारा 229 (1) (2) में दोषी को सजा कितनी मिलती है और क्या यह धारा जमानती है?
इससे पहले झूठे सबूत देने या बनाने के मामलों में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 के तहत कार्रवाई की जाती थी, लेकिन अब कानून को बदल दिया गया है। BNS के नए कानून के रुप में लागू हो जाने के बाद से अब ऐसे मामलों में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 229 के तहत कार्रवाई की जाती है। बीएनएस सेक्शन 229 में, आईपीसी सेक्शन 193 के मुकाबले ज्यादा सख्त तरीके से झूठी गवाही या गलत सबूत पेश करने के मामलों पर कार्यवाही की जाती है। इसमें सिर्फ अदालत में पेश किए गए गवाहों या प्रमाणों के बारे में नहीं, बल्कि कोर्ट से बाहर भी झूठे सबूत तैयार करने को अपराध माना जाता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 229 क्या है -
बीएनएस (BNS) की धारा 229 न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में झूठे सबूत देने या बनाने से संबंधित है। यह धारा उन लोगों को दंडित (Punished) करती है जो अदालत में झूठे सबूत (False Evidence) पेश करते हैं या बनाते हैं। झूठे सबूत का मतलब है किसी ऐसे तथ्य या जानकारी को पेश करना जो सच नहीं है। इसमें झूठी गवाही देना, फर्जी दस्तावेज बनाना, या किसी सबूत को मिटाना भी शामिल है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 229 के अपराध को 2 अलग-अलग उपधाराओं (Sub-Sections) में बताया गया है, आइये इसके बारे में विस्तार से जानते है:-
धारा 229 (1): अदालत में झूठी गवाही देना या गलत सबूत बनाना
अगर कोई व्यक्ति किसी मुकदमे के दौरान अदालत में झूठी गवाही (False Testimony) देता है, यानी झूठ बोलता है या गलत जानकारी देता है, या फिर कोई ऐसा सबूत (Evidence) पेश करता है जो नकली है या गलत है, तो यह धारा 229(1) के तहत अपराध माना जाएगा।
धारा 229(2): अदालत के बाहर झूठा सबूत बनाना या देना
अगर कोई व्यक्ति किसी पुलिस जांच (Police investigation) के दौरान या किसी अन्य कानूनी कार्यवाही के दौरान अदालत के बाहर झूठे सबूत बनाता है या गलत जानकारी देता है, तो यह धारा 229(2) के तहत अपराध है।
अदालत में झूठे सबूत क्यों नहीं देने चाहिए?
कोर्ट में झूठे सबूत देना कानूनन अपराध (Criminal Offence) होता है। इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं, आइये विस्तार से समझते है:-
गलत न्याय: झूठे सबूतों के कारण अदालत गलत फैसला सुना सकती है, जिससे निर्दोष (Innocent) लोगों को सजा हो सकती है और दोषी (Guilty) लोग बच सकते हैं।
न्याय व्यवस्था पर विश्वास ना होना: अगर झूठे सबूतों के आधार पर फैसले होने लगेंगे, तो सभी लोगों का न्याय व्यवस्था (Judicial System) से भरोसा उठ जाएगा।
BNS 229 के अपराध को साबित करने वाले मुख्य तत्व
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 229 के तहत किसी अपराध को साबित करने के लिए कुछ ज़रूरी बातें हैं, जिनको साबित करना ज़रूरी है। अगर ये बातें साबित हो जाती हैं, तो अदालत किसी व्यक्ति को धारा 229 के तहत दोषी ठहरा सकती है। ये बातें क्या हैं, आइए समझते हैं:
मुकदमे से संबंध: सबसे पहले यह साबित करना होगा कि जो झूठा सबूत दिया गया है, वह किसी कानूनी कार्यवाही के दौरान इस्तेमाल किया गया हो। मतलब, वह सबूत किसी अदालत में चल रहे मुकदमे से जुड़ा हुआ होना चाहिए।
जानबूझकर किया गया काम: यह साबित करना होगा कि आरोपी ने जो झूठा सबूत दिया या बनाया था। ऐसा कार्य उसने जानबूझकर किया था। ऐसा नहीं कि गलती से या अनजाने में कोई गलत बात बोल दी या लिख दी।
झूठा सबूत: जो सबूत दिया गया है, वह सचमुच में झूठा होना चाहिए। मतलब, या तो वह बात गलत हो, या फिर किसी असली सबूत को बदलकर झूठा बना दिया गया हो।
गलत इरादा: यह साबित करना होगा कि झूठा सबूत देने का मकसद अदालत को गुमराह (Mislead) करना था, या किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाकर किसी दोषी व्यक्ति को बचाना था।
सबूत: इन सबके अलावा यह भी ज़रूरी है कि जो भी आरोप (Blames) लगाए जा रहे हैं, उनके बारे में पक्के सबूत हों। सिर्फ शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
अगर कोई व्यक्ति इनमें से कोई भी काम करता है, और यह साबित हो जाता है कि उसने जानबूझकर ऐसा किया है, तो उसे सेक्शन 229 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।
BNS Section 229 के अपराध का उदाहरण
करिश्मा और साहिल दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त थे। एक दिन करिश्मा ने पुलिस में शिकायत की कि साहिल ने उसे धोखा दिया और उसके पैसे चुराए है। कुछ दिनों बाद यह मामला अदालत में चला गया और करिश्मा ने कोर्ट में गवाही दी कि साहिल ने सच में पैसे चुराए थे। लेकिन अदालत में सुनवाई के दौरान साहिल ने यह दावा किया कि करिश्मा ने जानबूझकर झूठी गवाही दी है केवल उसे फंसाने के लिए।
इसके बाद साहिल के वकील ने यह साबित किया कि करिश्मा का बयान गलत था और वह सच्चाई छुपा रही थी। जब जांच हुई, तो यह सामने आया कि करिश्मा ने अपने फायदे के लिए झूठी गवाही दी थी, ताकि साहिल को दोषी ठहराया जा सके। करिश्मा ने अदालत में जो दस्तावेज़ प्रस्तुत किए थे, वे भी फर्जी थे। इस मामले में करिश्मा ने धारा 229 के तहत झूठी गवाही दी थी, जिससे उसे सजा का सामना करना पड़ा।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 229 के दोषियों को क्या सजा मिलता है?
बीएनएस सेक्शन 229 के अपराध में दोषी (Guilty) पाये जाने वाले व्यक्तियों को दी जाने वाली सजा (Punishment) के बारे में इसकी दो उपधाराओं (Sub Sections) में बताया गया है। जो कि इस प्रकार है:
धारा 229 (1) के तहत सजा – अदालत में झूठी गवाही देने या गलत सबूत बनाने पर दंड
अगर कोई व्यक्ति अदालत में झूठी गवाही देता है या गलत सबूत बनाता है, तो उसे 7 साल तक की कैद और 10,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस अपराध को गंभीर माना जाता है क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है और गलत निर्णय होने की संभावना को बढ़ाता है।
धारा 229(2) के तहत सजा – अदालत के बाहर झूठा सबूत बनाने या देने पर दंड
अगर कोई व्यक्ति अदालत के बाहर, जैसे कि पुलिस जांच या अन्य कानूनी कार्यवाही में झूठे सबूत बनाता है या गलत जानकारी देता है, तो उसे 3 साल तक की कैद (Imprisonment) और 5,000 रुपये तक का जुर्माना (Fine) हो सकता है। यह अपराध भी गंभीर होता है, लेकिन इसकी सजा अदालत में झूठी गवाही देने की मामले से थोड़ी कम होती है।
बीएनएस की धारा 229 में आरोपी को जमानत मिलती है या नही?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 229 के तहत किए गए अपराध गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) होते है। इसका मतलब है कि ऐसे मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को अदालत से अनुमति (Permission) लेनी होती है। इसके साथ ही सेक्शन 229 गैर-जमानती (Non-Bailable) होती है, जिसमें आरोपी व्यक्ति को जमानत (Bail) मिलने बहुत ही मुश्किल होता है, यानि आरोपी को जमानत पाने के लिए पहले अदालत में याचिका दायर करनी होगी। अगर अदालत को लगा कि आरोपी ने जानबूझकर झूठी गवाही दी या गलत सबूत बनाया जिससे अदालत की कार्यवाही में बाधा हो सकती थी, तो जमानत मिलना बहुत ज्यादा मुश्किल हो सकता है।
आरोपी व्यक्तियों के लिए बचाव के कुछ उपाय
गलती से किया कार्य: अगर आप साबित कर दे, कि आपने जो भी गलत सबूत दिया है, वह गलती से दिये गए थे, आपने जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं किया तो आप सेक्शन 229 के केस से बच सकते हैं।
झूठे आरोप: अगर आप पर झूठा आरोप (False Blame) लगाया गया है, तो आप यह साबित करने की कोशिश करें कि आपको फंसाया जा रहा है। इस बात को साबित करने के लिए आप गवाहों, सबूतों और दस्तावेजों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
कोई नुकसान नहीं: अगर आप यह दिखा सकें कि आपके झूठे बयान या सबूत से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ, तो यह आपके बचाव में मददगार हो सकता है।
सबूतों पर सवाल उठाएँ: अगर आपके खिलाफ पेश किए गए सबूत कमजोर हैं, तो आप उन सबूतों के सच्चे होने पर सवाल उठा सकते हैं।
कानूनी सलाह लें: एक अच्छा वकील आपको सही कानूनी सलाह (Legal Advice) दे सकता है और आपके बचाव को मजबूत कर सकता है।
अपील का अधिकार: अगर आपको दोषी ठहराया जाता है, तो आपके पास उच्च न्यायालय (High Court) में अपील करने का अधिकार भी है।
शांत रहें और सहयोग करें: पुलिस या अदालत में शांत रहें और जाँच में सहयोग करें, व अपने वकील पर भरोसा रखें और उनकी सलाह के अनुसार चलें।
इस धारा के साथ लगने वाली मुख्य धाराएं:
किसी की हत्या करना (BNS 103)
हत्या का प्रयास (BNS 109)
गंभीर चोट पहुँचाना (BNS 117)
धोखाधड़ी करना (BNS 318)
चोरी करना (BNS 303)
जालसाजी करना (BNS 336)
निष्कर्ष:- BNS Section 229 अदालत की कार्यवाही व अन्य मामलों में झूठे सबूत पेश करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करती है। इसलिए हम सभी को इस प्रकार के कार्य करने से हमेशा बचना चाहिए। यदि आप भारतीय न्याय संहिता की धारा 229 से संबंधित किसी कानूनी मामले में फंसे हैं, तो आप हमारे अनुभवी वकीलों से तुरंत संपर्क कर सकते हैं। अभी हमारे अनुभवी वकीलों से बात करने के लिए आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके सहायता पा सकते है।
बीएनएस धारा 229 पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
बीएनएस की धारा 229 क्या है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 229 एक कानूनी प्रावधान है, जो झूठी गवाही देने और गलत सबूत बनाने को दंडनीय अपराध मानती है। यदि कोई व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया के दौरान जानबूझकर झूठी गवाही देता है या गलत साक्ष्य पेश करता है, तो उसे इस धारा के तहत दंडित किया जा सकता है।
क्या बीएनएस सेक्शन 229 में जमानत मिल सकती है?
सेक्शन 229 के तहत किए गए अपराध गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) होते हैं, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना अदालत की अनुमति के आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती। जमानत का प्रावधान अदालत के विवेक पर निर्भर करेगा, और आरोपी को जमानत के लिए अदालत में याचिका दायर करनी होगी।
झूठे साक्ष्य देने पर कितनी सजा हो सकती है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 229(1) में अदालत में झूठी गवाही देने या गलत सबूत बनाने पर 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है, जबकि धारा 229(2) के तहत अदालत के बाहर झूठे सबूत बनाने पर 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
BNS Section 229 के तहत आरोपी को बचाव के क्या उपाय होते हैं?
अगर किसी व्यक्ति पर सेक्शन 229 के तहत आरोप लगे है, तो वह यह साबित कर सकता है कि उसने अनजाने में या गलती से गलत गवाही दी थी, या उसे झूठा फंसाया जा रहा है।
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