प्रबन्ध : अवधारणा, प्रकृति एवं महत्त्व [MANAGEMENT : CONCEPT, NATURE And SIGNIFICANCE] PART-1/4

 प्रबन्ध : अवधारणा, प्रकृति एवं महत्त्व

[MANAGEMENT : CONCEPT, NATURE And SIGNIFICANCE]

PART-1/4

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प्रबन्ध एक ऐसा शब्द है जिससे लगभग प्रत्येक व्यक्ति यहाँ तक कि अशिक्षित व्यक्ति भी परिचित है। हम जब सिनेमाघर (Picture-house) जाते हैं. तो देखते हैं कि वहाँ पर एक कमर क बाहर प्रबन्धक या मैनेजर (Manager) की नाम पट्टी (Name Plate) लगी हुई है, जब हम किसा भा बैंक में जाते हैं तो देखते हैं कि यद्यपि बैंक के सभी कर्मचारी एक साथ पास-पास बैठकर अपना-अपना कार्य कर रहे हैं. परन्त एक कक्ष में अलग से एक व्यक्ति बैठा हे


से एक व्यक्ति बैठा है एवं उसके कक्ष के बाहर ‘ब्रांच मैनेजर’ या ‘शाखा प्रबन्धक’ की नाम पट्टी लगी हुई है। जब हम कॉलिज में जाते हैं, तो पता चलता है कि उस कॉलिज की प्रबन्ध समिति में अमुक व्यक्ति प्रबन्धक है। किसी होटल में जाते हैं, तो वहाँ पर भी प्रबन्धक नाम का व्यक्ति देखने को मिलता है। किसी कारखाने या अन्य किसी संस्था में जाते हैं, तो वहाँ भी प्रबन्धक या मैनेजर अवश्य होता है। जीवन बीमा निगम के कार्यालय में किसी काम से जाना पड़ जाये तो वहाँ पर भी प्रबन्धक (मैनेजर) का एक अलग केबिन होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि हम अपने व्यावहारिक जीवन में प्रबन्धक शब्द से भली-भाँति परिचित हैं। लेकिन यदि किसी व्यक्ति से यह पूछा जाय कि प्रबन्धक किसे कहते हैं, तो वह निरुत्तर सा हो जाता है, जबकि व्यावहारिक जीवन में वह इस शब्द से भली-भाँति परिचित है। वास्तव में, प्रबन्ध के अर्थ के प्रश्न पर उसकी स्थिति बिल्कुल वैसी ही हो जाती है जैसे यदि कोई गूंगा व्यक्ति मिठाई खाता है तो वह मिठाई के स्वाद को अनुभव तो करता है, परन्तु स्वाद को अभिव्यक्त नहीं कर पाता। ठीक इसी प्रकार आम व्यक्ति प्रबन्धक शब्द से परिचित तो है, परन्तु शब्दों की परिधि में व्याख्या करना उसके लिए सम्भव नहीं है।


वस्तुत: प्रबन्ध एक नवीन विषय, परन्तु अति प्राचीन जीवन-शैली है। पीटर एफ० ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार “प्रबन्धक एवं प्रबन्ध पकड़ में न आने वाले शब्द हैं।” (The words managers and management are slippery)


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प्रबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न अवधारणाएँ

(DIFFERENT CONCEPTS REGARDING MANAGEMENT)

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अवधारणा का आशय दृष्टिकोण से होता है। प्रबन्ध की अवधारणा के सम्बन्ध में प्रबन्ध के विद्वान एकमत नहीं हैं। प्रबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के अपने अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। कुछ विद्वान प्रबन्ध को ‘प्रबन्ध प्रक्रिया’ के दृष्टिकोण से देखते हैं। कुछ का विचार है कि प्रबन्ध अन्य लोगों के द्वारा तथा उनके साथ मिलकर काम करने की तकनीक है। कुछ लेखकों का कहना है कि प्रबन्ध लोगों का विकास है न कि वस्तुओं का निर्देशन। कुछ का विचार है कि प्रबन्ध निर्णय लेने । की प्रक्रिया है। इस प्रकार प्रबन्ध के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। प्रबन्ध की कुछ प्रमुख अवधारणाएँ तथा उनका विवेचन निम्न प्रकार है :


1 थियो हैमन की प्रबन्ध सम्बन्धी अवधारणा (The Haimann’s Concept of Management)-प्रोफेसर थियो हैमन ने प्रबन्ध शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में किया है


(i) प्रबन्ध अधिकारियों (Managerial Personnel) के अर्थ में,


(ii) प्रबन्ध प्रक्रिया (Management Process) के रूप में,


(iii) प्रबन्ध एक विज्ञान (Management as a Science) के रूप में।


(i) प्रबन्ध अधिकारियों के अर्थ में इस रूप में प्रबन्ध का अर्थ उन प्रबन्धकीय कर्मचारिया। से है जो किसी संस्था में कार्यरत व्यक्तियों के समूह की क्रियाओं को नियन्त्रित करते है। अतः । ‘प्रबन्ध’ को एक ‘प्रबन्धकीय अधिकारी’ के रूप में सम्बोधित किया जाता है। उदाहरणार्थ, एक कम्पनी का संचालक मण्डल’, एक हिन्दू अविभाजित परिवार का ‘कर्ता’ या एक महाविद्यालय का । प्राचार्य-ये सभी अपनी-अपनी संस्था के प्रबन्धक कहे जाते हैं।


(ii) एक प्रक्रिया के रूप में प्रक्रिया के रूप में प्रबन्ध का अर्थ उन समस्त प्रबन्धकीय कार्यो, जैसे-नियोजन, संगठन, अभिप्रेरणा तथा नियन्त्रण से है जो निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं। सरल शब्दों में ‘प्रबन्ध’ एक सतत प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न प्रबन्धकीय कार्यों का प्रयोग कार्यरत वर्ग के मानवीय प्रयासों प्रसाधनों. मशीनों, कार्य-पद्धति व मुद्रा के श्रेष्ठतम उपयोग में किया जाता ह, ताकि पर्व-निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके। यह ध्यान रखें कि विभिन्न काया का प्रयाग एक निश्चित क्रम में ही किया जाता है। कोई एक कार्य अलग से नहीं किया जा सकता। सभा काय क्रमानुसार समन्वित ढंग से एक प्रक्रिया के रूप में किये जाते हैं। प्रबन्ध की इस अवधारणा का निम्न चार्ट की सहायता से भली प्रकार समझा जा सकता हैं ।


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प्रबन्ध

[MANAGEMENT]

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उक्त चार्ट से स्पष्ट है कि ‘प्रबन्ध’ वास्तव में एक प्रक्रिया है तथा नियोजन, संगठन, अभिप्रेरणा एवं नियन्त्रण उस प्रक्रिया के आधारभूत अंग हैं। प्रबन्ध को एक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करने वाले अन्य विद्वानों में जोसेफ एल० मैसी, जार्ज आर० टैरी, ई० एफ० एल० ब्रीच, न्यूमैन व समर, मैकफारलैण्ड, जेम्स एल० लुण्डी आदि का नाम मख्य रूप से आता है।


(iii) एक विज्ञान के रूप में विज्ञान के रूप में प्रबन्ध का अर्थ उस संगठित ज्ञान-समूह से है जिसका शिक्षण एवं प्रशिक्षण किया जा सकता है। वकालत, डॉक्टरी तथा इंजीनियरिंग की भाँति प्रबन्ध को एक पृथक् विद्या माना जाता है, क्योंकि इसके भी अपने कुछ सार्वभौमिक सिद्धान्त हैं। इस प्रकार प्रबन्ध एक विज्ञान है।


अतः प्रबन्ध से आशय एक ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से है जो प्रबन्ध विज्ञान के नियमों व सिद्धान्तों का पालन करते हुए समन्वित तथा सतत् प्रक्रिया के रूप में प्रबन्धकीय कार्यों का निष्पादन करते हैं।


2. प्रबन्ध‘ अन्य लोगों के द्वारा तथा उनके साथ मिलकर काम करने की तकनीक है। (Management is getting things done through and with others)-इस अवधारणा के प्रमुख । प्रवर्तक कुण्ट्ज हैराल्ड (Koontz Harold) है। इस अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया।का की पक्रिया में अपने नतत्व निदर्शन उनका याग्यता तथा क्षमता के अनसार कार्य सौंपने तथा नियन्त्रण से अधिकतम कुशलता के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करते है।


कुण्ट्ज हैराल्ड के अनुसार, “औपचारिक वर्गों में संगठित व्यक्तियों के द्वारा उनके साथ मिलकर काम करने की कला का नाम ही प्रबन्ध है।” इस अवधारणा के चार मुख्य तत्व है


(ii) ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिसमें कि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के अनुसार। काम करते हुए भी सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में एक-दूसरे का सहयोग कर सकें,


(iii) कार्य-निष्पादन के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना,


(iv) अभीष्ट उद्देश्यों को सार्थक रूप से प्राप्त करने में उस संगठित वर्ग व कार्यकुशलता को अधिकतम बनाना।


3. ‘प्रबन्ध‘ वही है जो प्रबन्ध करता है (Management is that Management Does)-प्रबन्ध की इस अवधारणा का जेम्स लुण्डी (James Lundy) ने अपनी पुस्तक ‘Effective Industrial Management’ में विवेचन किया है। इस अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध में इसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों का समावेश किया जाता है। सामान्यतः प्रबन्ध के चार कार्य हैं-नियोजन, समन्वय, अभिप्रेरणा तथा नियन्त्रण।


4.’प्रबन्ध‘ लोगों का विकास है न कि वस्तुओं का निर्देशन …….. यह कार्मिक प्रशासन है (Management is the development of people not the direction of things …….. It is Personnel Administration)-इस अवधारणा के प्रमुख प्रवर्तक लारेंस ए० एप्पले हैं, जिन्होंने प्रबन्ध के क्षेत्र में मानव तत्त्व को सर्वोच्च स्थान दिया है और भौतिक साधनों के निर्देशन को इसके क्षेत्र से दूर रखा है। वास्तव में साधन मानव के लिए होते हैं, न कि मानव साधन के लिए। यदि प्रबन्ध की तकनीक के माध्यम से मानव का पूरा विकास किया जाये एवं ऐसे विकसित मानव अपनी पूर्ण क्षमता के साथ निष्ठापूर्वक कार्य करें, तो निश्चित ही उत्पादकता में वृद्धि होगी। यह सामान्य अनुभव की बात है कि यदि मनुष्य पूर्ण क्षमता के साथ कार्य करता है, तो समस्त भौतिक साधन भी पूर्ण क्षमता के साथ कार्य करेंगे. क्योंकि कम्प्यूटर जैसे उन्नत यन्त्र भी मनुष्य की सक्रियता पर निर्भर करते हैं। मनुष्य का व्यक्तिव एक कली या अधखिले पुष्प की भाँति होता है, जिसमें प्रबन्ध के द्वारा ही निखार लाया जा सकता है। जिस प्रकार एक कुशल माली अपनी वाटिका के वृक्षों को खाद-पानी देकर एवं प्रकाश आदि की उत्तम व्यवस्था करके वृक्षों की सुरक्षा करता है, तथा ऐसे श्रेष्ठ वातावरण में ही वृक्ष पुष्पित व पल्लवित होकर सबको सुख व शान्ति प्रदान करते हैं। इसी प्रकार एक कारखाने रूपी उद्यान में ‘प्रबन्ध’ रूपी माली मानव रूपी पर्यावरण को विकसित करके उच्च उत्पादकता रूपी पुष्पों एवं फलों से उपभोक्ताओं को सुख, शान्ति एवं सन्तोष प्रदान करता है। मनुष्यों के विकास में ही कारखाने या उद्योग का विकास छिपा रहता है। इसी तथ्य के आधार पर एक बार एक अमरीकन कारपोरेशन के अध्यक्ष ने अपने कर्तव्यों को बताते हुए कहा था, “हम मोटरें, हवाई जहाज, फ्रीज, रेडियो या जूतों के फीते नहीं बनाते; हम बनाते हैं मनुष्य और मनुष्य इन वस्तुओं का निर्माण करते हैं।”


अतः स्पष्ट है कि ‘प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है’। एप्पले ने प्रबन्ध को कार्मिक (या सेविवर्गीय) प्रशासन की संज्ञा दी है, क्योंकि सेविवर्गीय प्रशासन के द्वारा ही मनुष्यों का विकास किया जा सकता है।


5. प्रबन्ध निर्णय लेने की प्रक्रिया है (Management is a Process of Decisionmaking)-प्रबन्ध के इस दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध को निर्णय लेने तथा नेतृत्व करने का कार्य बतलाया गया है। इस धारणा के अनुसार प्रबन्धक की कुशलता का प्रमाण यही है कि वह सही समय पर सही निर्णय ले। प्रबन्ध के इस दृष्टिकोण के अनुसार ये भिन्न-भिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न अधिकारियों के द्वारा लिये जाने चाहिएँ और प्रत्येक अधिकारी का निर्णय-क्षेत्र स्पष्ट तथा परिभाषित। होना चाहिए। इस अवधारणा को मानने वालों में ड्रकर तथा स्टेनले वेन्स का नाम हेनरी फेयोल हैं। उनके मतानुसार प्रबन्ध एक सार्वभौमिक आर्थिक हो या सामाजिक, धार्मिक हो या राजनैतिक


6. सार्वभौमिकता की अवधारणा (Universality Concept)-इस अवधारणा के प्रवर्तक सार प्रबन्ध एक सार्वभौमिक क्रिया है जो प्रत्येक संस्था में, चाहे वहधार्मिक हो या राजनैतिक, पारिवारिक हो या व्यावसायिक, समान रूप से की जाती है। प्रबन्ध सिफ व्यवसाय के लिए ही नहीं बल्कि समस्त प्रकार की संगठित क्रियाओं के लिए सामान्य जरूरत है। लारेंस ए० एप्पले के अनुसार, “जो प्रबन्ध कर सकता है वह किसी का भी प्रबन्ध कर सकता है।” प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं जो सरल व्यक्तिगत कार्यों से लेकर बहुराष्ट्रीय निगमों पर लागू होते हैं।


7. पेशेवर अवधारणा (Professional Concept)-व्यवसाय का निरन्तर विकास होने और। प्रबन्ध का स्वामित्व से अलगाव होने के कारण प्रबन्ध को एक पेशे के रूप में माना जाने लगा है। विश्व के विकसित राष्ट्रों मुख्यतया अमेरिका, फ्रांस, जापान आदि ने प्रबन्ध को एक स्वतन्त्र पेशे के रूप में स्वीकार कर लिया है। अपने देश में भी वर्तमान में जन्मजात एवं पारिवारिक प्रबन्धको का स्थान पेशेवर प्रबन्धकों ने ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया है। आज प्रबन्धकों को अन्य पेशवर। व्यक्तियों जैसे—चिकित्सक, वकील, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट. अध्यापक की तरह पेशेवर व्यक्ति माना। जाने लगा है।


8. प्रणाली अवधारणा (System Concept)-प्रबन्ध की इस अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध एक प्रणाली है। प्रबन्ध को प्रणाली के रूप में देखने का तात्पर्य होता है एकीकृत दृष्टिकोण (Unified Approach) अपनाना। प्रणाली अवधारणा के अनुसार किसी एक पहलू के स्थान पर सभी पहलुओं पर एक साथ विचार किया जाता है। यह किसी एक ही भाग के अध्ययन के स्थान पर सम्पूर्ण या सभी भागों का अध्ययन करने पर बल देती है। प्रबन्ध की प्रणाली अवधारणा सभी अंगों के एकीकरण एवं समन्वय पर तो बल देती ही है, साथ ही साथ उप-प्रणालियों के पूर्ण विकास की ओर भी पर्याप्त ध्यान देती हैं।



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प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF MANAGEMENT)

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प्रबन्ध की उपर्युक्त वर्णित अवधारणाओं से स्पष्ट है कि ‘प्रबन्ध’ एक व्यापक शब्द है, जिसे आधुनिक औद्योगिक जगत में विभिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है। संकुचित अर्थ में इससे आशय ‘अन्य व्यक्तियों से कार्य कराने की युक्ति’ से है। इस दृष्टि से जो व्यक्ति अन्य लोगों से काम कराने की क्षमता रखते हैं, उन्हें ‘प्रबन्धक’ कहते हैं। व्यापक अर्थ में प्रबन्ध एक कला एवं विज्ञान है जो पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उत्पादन के विभिन्न घटकों में समन्वय स्थापित करता है। इस दृष्टि से यह स्वयं उत्पादन का एक महत्वपूर्ण घटक है। उत्पादन के विभिन्न साधनों में भूमि, पूँजी व मशीन गैर-मानवीय साधन हैं, जबकि श्रम, साहस व प्रबन्ध मानवीय साधन हैं। यद्यपि उत्पादन के ये सभी साधन अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं, किन्तु ‘प्रबन्ध’ इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यह वह आर्थिक साधन है जो उत्पादन के अन्य साधनों को एकत्र करता है, भविष्य के लिए नियोजन करता है, संस्था में संगठनात्मक कलेवर का निर्माण करता है, व्यावसायिक क्रियाओं का निर्देशन व संचालन करता है, उनमें आवश्यक समन्वय स्थापित करता है तथा समस्त क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है। संक्षेप में, “प्रबन्ध एक कला एवं विज्ञान है जो संस्था के सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न व्यक्तियों के व्यक्तिगत व सामूहिक प्रयासों के नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय एवं नियन्त्रण से सम्बन्ध रखता है।“


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प्रबन्ध की परिभाषाएँ

(DEFINITIONS OF MANAGEMENT)

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विभिन्न विद्वानों ने प्रबन्ध की परिभाषाएँ अपने-अपने दृष्टिकोण से दी हैं। प्रबन्ध की उपरोक्त अवधारणाओं के अध्ययन के उपरान्त इसके अर्थ को और अधिक स्पष्टता के साथ समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ नीचे प्रस्तुत की जा रही हैं-


स्टेनले वेन्स (Stanley Vance) के अनुसार, “प्रबन्ध केवल निर्णय लेने तथा मानवीय क्रियाओं पर नियन्त्रण करने की विधि है. जिससे पर्व-निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सका।


विवेचना-इस परिभाषा से प्रबन्ध के निम्नलिखित लक्षणों का आभास होता है


(i) प्रबन्ध एक प्रक्रिया है,


(ii) इस प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जाती है, और


(iii) यह लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु, निर्णयन व नियन्त्रण पर बल देती है। इस परिभाषा में प्रबन्ध के अन्य कार्यों का समावेश न होने के कारण यह परिभाषा अपूर्ण है।


2. किम्बाल व किम्बाल के अनुसार, “विस्तृत रूप से प्रबन्ध उस कला को कहते हैं जिसके द्वारा किसी उद्योग में मानव व माल को नियन्त्रित करने के लिए जो आर्थिक सिद्धान्त लागू होते हैं, उन्हें प्रयोग में लाया जाता है।”


विवेचना-इस परिभाषा को उपयुक्त व पूर्ण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि प्रबन्ध में आर्थिक सिद्धान्तों के अतिरिक्त अन्य सिद्धान्तों का भी प्रयोग किया जाता है।


3. रोस मूरे के अनुसार, “प्रबन्ध से आशय निर्णयन से है।” विवेचना-यह परिभाषा अत्यन्त संकुचित है, क्योंकि इसके अनुसार केवल निर्णयन ही प्रबन्ध है।


4. हेनरी फेयोल के अनुसार, “प्रबन्ध करने से आशय पूर्वानुमान लगाने एवं योजना बनाने, संगठन की व्यवस्था करने, निर्देश देने, समन्वय करने तथा नियन्त्रण करने से है।


विवेचना-इस परिभाषा में लेखक ने प्रबन्ध के कार्यों की व्याख्या की है, किन्तु उन्होंने प्रबन्ध के समस्त कार्यों की ओर संकेत नहीं किया है (जैसे अभिप्रेरणा व निर्णयन)।


5. जेम्स एल० लुण्डी के अनुसार, “प्रबन्ध मुख्यतः विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दूसरों के प्रयत्नों को नियोजित, समन्वित, प्रेरित तथा नियन्त्रित करने का कार्य है।”5


विवेचना-चूँकि इस परिभाषा में प्रबन्ध के अधिकांश कार्यों का समावेश किया गया है, अतः इसे उपयुक्त परिभाषा कहा जा सकता है।


6. जार्ज आर० टेरी के अनुसार, “प्रबन्ध एक पृथक् प्रक्रिया है जिसमें नियोजन, संगठन, क्रियान्वयन तथा नियन्त्रण को सम्मिलित किया जाता है तथा इनका निष्पादन व्यक्तियों एवं साधनों के उपयोग द्वारा उद्देश्यों को निर्धारित व प्राप्त करने के लिए किया जाता है।” [यह प्रबन्ध की काफी विस्तृत परिभाषा है।


7. पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, “प्रबन्ध एक बहु-उद्देशीय तन्त्र है जो व्यवसाय का प्रबन्ध करता है प्रबन्धकों का प्रबन्ध करता है और कर्मचारियों तथा उनके कार्य का प्रबन्ध करता है।”


8. आर० सी० डेविस के अनुसार, “प्रबन्ध मुख्यतः एक मानसिक क्रिया है, यह कार्य के नियोजन, संगठन एवं सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु अन्य व्यक्तियों का नियन्त्रण करने से सम्बन्ध रखता है।”। यह परिभाषा भी अपूर्ण है, क्योंकि इसमें प्रबन्ध के केवल तीन कार्यों का ही समावेश । किया गया है।]


9. विलियम एच० न्यूमैन के अनुसार, “किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी व्यक्ति समूह के प्रयत्नों का मार्गदर्शन, नेतृत्व व नियन्त्रण ही प्रबन्ध कहलाता है।”2 [इस परिभाषा में भी प्रबन्ध के केवल तीन कार्यों का ही समावेश किया गया है।


10. लारेन्स ए० एप्पले के अनुसार, “प्रबन्ध वस्तुओं का निर्देशन नहीं वरन् व्यक्तियों का विकास है।”


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निष्कर्ष(CONCLUSION)

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उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रबन्ध एक कला एवं विज्ञान है जो संस्था के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संगठन में कार्यरत व्यक्तियों के प्रयासों के नियोजन, निर्देशन, समन्वय, अभिप्रेरणा व नियन्त्रण से सम्बन्ध रखता है।


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प्रबन्ध के लक्षण अथवा विशेषताएँ

(CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT)

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‘प्रबन्ध’ की उपर्युक्त अवधारणाओं व परिभाषाओं के अध्ययन से इसकी निम्नलिखित | विशेषताओं का पता चलता है


1 प्रबन्ध एक प्रक्रिया है (Management is a process)-प्रबन्ध एक प्रक्रिया का नाम है जो उस समय तक चलती है जब तक कि निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो जाती। प्रक्रिया के रूप में इसके अन्तर्गत नियोजन, संगठन, निर्देशन, नेतृत्व, अभिप्रेरणा एवं नियन्त्रण आदि तकनीकें शामिल हैं।


2. प्रबन्ध उद्देश्य–पूरक प्रक्रिया (Management is a mission-oriented process)-प्रबन्ध संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति का एक साधन है, न कि स्वयं में कोई लक्ष्य। इस लक्षण ने आज ‘उद्देश्यों व परिणामों द्वारा प्रबन्ध’ (Management by objectives and results) जैसी समुन्नत तकनीकों के विकास में सहयोग दिया है।


3. प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है (Management is a social process)-प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है, क्योंकि इसे मानवीय संसाधनों का उपयोग करना पड़ता है तथा अन्तिम लक्ष्य प्राप्ति हेतु समूह के सभी सदस्यों को अभिप्रेरित करना पड़ता है।


4. प्रबन्ध मानवीय क्रिया है (Management isa human activity)-प्रबन्ध विशुद्ध रूप से मानवीय क्रिया है। इसी कारण लारेन्स एप्पले का कहना है कि ‘प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है न कि वस्तुओं का निर्देशन’।


5. प्रबन्ध अधिकार सत्ता की प्रणाली है (Management is a system of| authority)-प्रबन्ध को अधिकार सत्ता की प्रणाली माना गया है, क्योंकि प्रबन्धक ही कार्य निष्पादन हेत आदेश-निर्देश देते हैं, कार्य-प्रगति का मूल्यांकन करते हैं, नियम-विनियम बनाते हैं तथा। अधीनस्थों का नेतृत्व करते हैं।


6. प्रबन्ध एक निरन्तर जारी रहने वाली प्रक्रिया है जिसकी आवश्यकता सभी स्तरों पर है (Management is a continuous process and is needed at all levels)-प्रबन्ध की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है एवं इसकी आवश्यकता संगठन के सभी स्तरों पर पड़ती है।7. प्रबन्ध एक कला एवं विज्ञान दोनों ही है (Management is an art as well as


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प्रबन्ध : अवधारणा, प्रकृति एवं महत्त्व science)-प्रबन्ध एक कला एवं विज्ञान दोनों ही है। प्रबन्ध का वैज्ञानिक पक्ष सिद्धान्तों एवं नियमा का विकास करता है तथा कला पक्ष उन्हें प्रबन्ध के क्षेत्र में व्यावहारिक तौर पर लागू करता है।

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8. प्रबन्ध एक पेशा है (Managementisa profession)-प्राचीन काल में यह मान्यता पा कि प्रबन्धक बनाए नहीं जा सकते वे तो पैदा होते हैं. परन्त आज प्रबन्ध एक प्रोफेशन या पेशा है और प्रबन्धक वे पेशेवर व्यक्ति हैं जो प्रबन्ध-कार्य को करते हैं।


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प्रबन्ध, प्रशासन तथा संगठन

(MANAGEMENT, ADMINISTRATION AND ORGANISATION)

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प्रबन्ध एक विकसित एवं नवीन ज्ञान का विषय है जिसका प्रयोग विभिन्न भावों के अन्तर्गत किया जाता है। विभिन्न विद्वानों ने ‘प्रबन्ध’ शब्द का प्रयोग विभिन्न रूपों में किया है। जैसे-प्रबन्ध, संगठन एवं प्रशासन। इन शब्दों के अर्थों के बारे में एक राय नहीं है। कुछ लोगों का विचार है कि ‘प्रशासन’, ‘प्रबन्ध’ एवं ‘संगठन’ शब्द अन्तर-परिवर्तनीय हैं तथा उन्हें प्रायः पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया जाता है, जबकि कुछ लोगों की धारणा है कि ये तीनों ही शब्द भिन्न-भिन्न अर्थ रखते हैं। वास्तव में, इन्हें समझने के लिए यह आवश्यक है कि पहले इन शब्दों का आशय स्पष्ट कर लिया जाय।


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प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF MANAGEMENT)

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प्रबन्ध, उद्योगों के लिए किये जाने वाला वह कार्य है. जिसका सम्बन्ध प्रशासन द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत नीतियों को क्रियान्वित करने तथा अपने समक्ष उपस्थित विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठन का उपयोग करने से होता है। प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा


प्रशासन एक निर्णयात्मक प्रकार्य है जिसके अन्तर्गत संस्था की नीतियों एवं उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। प्रशासन की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं


1 ओलीवर शैल्डन के अनुसार, “किसी औद्योगिक संस्थान में प्रशासन का कार्य नीति निर्धारण करना, वित्त, उत्पादन एवं वितरण में समन्वय स्थापित करना, संगठन का क्षेत्र निर्धारित करना तथा अन्त में सभी कार्यों को नियन्त्रित करना है।”


2. डब्ल्य० आर० स्प्रीगल के अनुसार, “प्रशासन किसी औद्योगिक उपक्रम का वह स्तर है जिसका सम्बन्ध संस्था के उद्देश्यों को पूर्णरूप से निश्चित करना है तथा उन आवश्यक नीतियों को निर्धारित करना है जिनसे इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।”


उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रशासन एक विचार करने की प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उद्देश्यों एवं नीतियों का निर्धारण होता है। यह कार्य मुख्यत: उपक्रम के स्वामी अथवा उनके प्रतिनिधि करते हैं।


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संगठन का अर्थ एवं परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF ORGANISATION)

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संगठन’ के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। कुछ इसे संस्था में अधिकारों और कर्त्तव्यों के सुनिश्चित ढाँचे के रूप में देखते हैं, तो कुछ इसे प्रबन्ध की एक क्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं। मुख्य परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं


थियो हैमन के अनसार “संगठन से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा उपक्रम के कार्य-कलापों को परिभाषित एवं वर्गीकृत किया जाता है और उन्हें विभिन्न व्यक्तियों को सौंप कर उनके अधिकार सम्बन्धों को सुनिश्चित किया जाता है।”


विलियम आर० स्प्रीगल के अनुसार, “संगठन एक मशीनरी है जो प्रशासन और प्रबन्ध के मध्य सामंजस्य स्थापित करती है।”


उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि संगठन जहाँ एक ओर विभिन्न कार्यों व क्रियाओं में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित करने की प्रक्रिया है, वहीं दूसरी ओर कार्यरत व्यक्तियों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित करने की कला है।


तीनों शब्दों का आशय स्पष्ट करने के उपरान्त तीनों शब्दों के सम्बन्ध में पाई जाने वाली प्रमुख विचारधाराओं की विवेचना निम्न प्रकार है


प्रबन्ध एवं प्रशासन समानार्थी एवं पर्यायवाची रूप में अधिकांश विद्वान ‘प्रबन्ध’ और “प्रशासन’ शब्दों को समानार्थी मानते हैं। इस विचारधारा को मानने वालों में फ्रेडरिक विन्सलो टेलर, हेनरी फेयोल, विलियम न्यूमैन तथा मेरी फौलेट के नाम उल्लेखनीय हैं। इन सभी के अनुसार दोनों शब्दी का एक ही अर्थ है और उन्हें एक-दूसरे के स्थान पर आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। टेलर व उनके सहायकों ने तान्त्रिक एवं उत्पादन क्षेत्रों में ‘प्रबन्ध’ तथा गैर-तान्त्रिक और गैर-उत्पादन क्षेत्रों में ‘प्रशासन’ शब्द का प्रयोग किया है। विलियम न्यूमैन तथा हेनरी फेयोल ने सरकारी क्षेत्रों में प्रशासन एवं व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रबन्ध शब्द का प्रयोग किया है।


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प्रबन्ध एवं प्रशासन अलग-अलग

(MANAGEMENT AND ADMINISTRATION BOTH ARE DIFFERENT)

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जे० एन० शल्जे, विलियम स्पीगल, ओलिवर । फ्लोरेंस एवं आर्डवे टीड आदि प्रबन्ध विद्वान ‘प्रबन्ध’ और ‘प्रशासन को अलग-अलग मानते हैं। इनकी राय में प्रशासन एक निर्णयात्मक कार्य है, जबकि प्रबन्ध एक क्रियात्मक कार्य है जो मुख्यतया प्रशासन द्वारा निर्धारित व्यापक नीतियों को क्रियान्वित करने से सम्बन्ध रखता है।


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प्रबन्ध एवं संगठन में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN MANAGEMENT AND ORGANISATION)

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संगठन’, ‘प्रबन्ध’ से मिलती-जुलती क्रिया है। प्रबन्ध एवं प्रशासन की भाँति प्रबन्ध एवं संगठन के सम्बन्ध में कोई मतभेद नहीं है। सभी का मानना है कि प्रबन्ध एवं संगठन अलग-अलग हैं, एक-दूसरे के पर्यायवाची नहीं हैं। प्रबन्ध कार्यों में से संगठन एक प्रमुख कार्य है। इस आधार पर, प्रबन्ध अधिक व्यापक है जिसमें संगठन का भी समावेश होता है। प्रबन्ध पूर्व-निश्चित नीतियों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करता है, जबकि संगठन उन नीतियों को क्रियान्वित करने हेतु व्यक्तियों के समूह का निर्माण कर उनके उत्तरदायित्वों का निर्धारण करता हैं ।


अब हम तीनों शब्दों में पाये जाने वाले अन्तर पर विचार करेंगे।


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