ऐतिहासिक नगर चंदौसी का संक्षिप्त परिचय


 मुहल्लों के नामों में ही जिंदा चन्दौसी के नौ गेट


चन्दौसी के नौ गेटों की स्थापना 1757 में रुहेलों के शासनकाल में की गई थी। 


चन्दौसी के नौ गेटों की स्थापना 1757 में रुहेलों के शासनकाल में की गई थी। नगर को एक परकोटे की सीमा में बांधकर आने जाने के लिए ये नौ गेट बनवाए गए थे। देखरेख के अभाव में ये गेट धराशायी हो गए और अब सिर्फ इनके नाम पर बने मुहल्ले ही इनके इतिहास की याद दिलाते हैं।


इतिहास पर नजर डालें तो चन्दौसी पहले चांद सी नगरी के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1757 में रुहेला शासक अली मुहम्मद खां के कोषाध्यक्ष दौलतशाह ने इसकी चहारदीवारी करवाई तथा चन्दौसी के अंदर आने के लिए नौ गेट बनवाए। बताया जाता है कि दौलतशाह को चन्दौसी की स्थिति काफी पंसद आई थी। उसने नगर के आर्थिक महत्व को अच्छी तरह समझा। उसके द्वारा ही इस नगरी का आरंभिक विकास हुआ। उसने नगर को चारों ओर से घेरते हुए परकोटा बनवाया, जिसमें आठ दरवाजे और नवीं घटिया थी। इनके नाम खुर्जा गेट, कैथल गेट, खेड़ा दरवाजा, सीकरी गेट, जारई गेट, मुरादाबाद गेट, सम्भल गेट, बिसौली गेट व घटलेश्वर गेट रखे गए। रुहेलों के शासनकाल में इन दरवाजों पर सुदृढ़ फाटक भी लगे थे, जो रात में बंद कर दिए जाते थे। दरवाजों के दोनो ओर चौकसी के उद्देश्य से ऊंची-ऊंची प्रहरी छतरियां भी बनी थीं। धीरे धीरे ये गेट अपना अस्तित्व खोते गए अब केवल गोशाला मार्ग पर स्थित बाग पर एक छतरी का अवशेष बाकी है। इन गेटों के नाम नगर पालिका परिषद के रिकार्ड में भी दर्ज हैं। सीता आश्रम रोड पर एक गेट बाद में बना जो वर्तमान में सीता आश्रम गेट के नाम से जाना जाता है।


गेटों के पास बनवाए गए मंदिर


रुहेलों के शासनकाल में नगर की सुरक्षा के लिए फाटकों और छतरियों पर पहरेदार रखे जाते थे। रात में फाटक बंद होने के बाद बाहर से आने वाले यात्रियों का नगर में प्रवेश नहीं होता था। यह सब नगर की सुरक्षा के लिए किया जाता था। रुहेलों के बाद इन ऐतिहासिक दरवाजों के पास मंदिरों की स्थापना की गई। खुर्जा गेट के पास गढ़ी का मंदिर, कैथल गेट स्थित वेणु गोपाल का मंदिर, खेड़ा गेट में शंखधारों का मंदिर (जहां अब गीता सत्संग भवन है), बिसौली गेट पर हनुमान गढ़ी का मंदिर, सीकरी गेट, जारई गेट और मुरादाबाद गेट के लिए सीकरी दरवाजे की बावड़ी तथा सम्भल गेट और घटलेश्वर गेट पर गोधा वालों का मंदिर स्थापित है। इन मंदिरों में रात्रि निवास का भी इंतजाम था।


चंदौसी का इतिहास 

चंदौसी के बारे ये सुनकर चौंक जायेंगे आप.


आज हम बात करने जा रहे है भारत के एक ऐसी शहर की जिसका इतिहास और बर्तमान दोनों ही चाँद जैसे चमकदार है।  इस चाँद जैसे सुन्दर शहर का नाम है चंदौसी। तो चलिए जानते है कुछ मजेदार तथ्य चंदौसी के बारे में।


चंदौसी का सामान्य परिचय 

चन्दौसी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में संभल जिले में एक शहर और एक नगर पालिका बोर्ड है। शहर का मूल नाम “चाँद सी” था, जिसका अर्थ है “चंद्रमा जैसा” (भारतीय कविता में चंद्रमा को सुंदर माना जाता है)। इसकी औसत ऊंचाई 284 मीटर (603 फीट) है। यह नई दिल्ली से 187.5 किमी दूर है।


चंदौसी के उद्योग 

चंदौसी को मैंथा के तेल के लिए जाना जाता है, जो शहर का मुख्य व्यापार बन गया है। चंदौसी में मेंथा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। आसवन के माध्यम से संयंत्र से आवश्यक तेल निकालने के बाद, उत्पादों का निर्यात किया जाता है।


चंदौसी का गणेश मेला

शहर घी और पारंपरिक गणेश चतुर्थी उत्सव  के लिए भी जाना जाता है। यह गणेश चतुर्थी के समय गणेश यानि “हाथी” के प्रतिनिधियों के नेतृत्व में स्वचालित रूप से चलती मूर्तियों की प्रस्तुति के लिए भी जाना जाता है, जो दुर्लभ है। चंदौसी में इस त्योहार में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। गणेश मेला 10 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 350 € € 400 स्टाल, शोरूम, हॉल, कैनोपी आदि हैं। कोई भी विशेष रूप से बच्चों के लिए शॉपिंग आउटलेट, कपड़े, पूंजीगत सामान, खाने के प्रतिष्ठान, मनोरंजन की विविधता पा सकता है।


हर अगले दिन चंदौसी और आसपास के क्षेत्र के युवा आगामी प्रतिभाशाली कलाकारों को प्रोत्साहित करने और प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं होती हैं। कार्यक्रम में नृत्य, अभिनय, गायन, संगीत से लेकर दर्द, खेल और अन्य गतिविधियां शामिल हैं। ये कार्यक्रम निजी के साथ-साथ सरकार द्वारा भी आयोजित किए जाते हैं।


वे युवाओं को अपने कौशल और प्रतिभा को बढ़ाने के लिए एक अच्छा मंच प्रदान करते हैं। चंदौसी अपने गजक के लिए भी जाना जाता है जो आमतौर पर सर्दियों के मौसम में तैयार होता है (अक्टूबर एक फरवरी)। गजक को तिल और गुड़ (या गन्ने की चीनी) के साथ तैयार किया जाता है, जिसकी तैयारी में समय लगता है। गजक को 5 किलोग्राम से  8 किलोग्राम तैयार करने में लगभग 10 से  15 घंटे लगते हैं। आटे को तब तक फेंटा जाता है जब तक कि सभी तिल न टूट जाएं और आटे में अपने तेल को छोड़ दें।


चंदौसी के प्रसिद्ध स्थान

शहर के कई क्षेत्र हैं। क्षेत्र: – सुपर मार्केट, साहूकारा मोहल्ला, कसेरथ बाज़ार, महाजन स्ट्रीट, पुरानी पांथ, बिसौली गेट, गणेश कॉलोनी, सीता रोड, बड़ा बाज़ार, ब्रह्म बाज़ार, डिस्पेंसरी रोड, घण्टा घर, संभल गेट, अवास विकास, छोटे लाल कॉलोनी, खुर्जा गेट, सीकरी गेट, पंजाबियन स्ट्रीट, लोधियान मोहल्ला, भगवती विहार, शक्ति नागर, वैष्णो विहार, मयूर विहार, विकस नगर ग्यात्री विहार, कालंदी कुंग, कैथल गेट, सुभाष रोड गौशाला रोड, बैंक रोड, बंगला बाजार, खोबा चंद बाजार, जारई गेट, गोला गंज, सीकरी गेट, दयाल कॉलोनी, लक्समैन गंज, कुरेशियान, मछली मार्किट, विष्णु विहार, संगम विहार, पचेल कॉलोनी, बहजोई रोड आदि।


चंदौसी की जनसंख्या

जनसांख्यिकी 2011 की जनगणना के अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, चंदौसी की आबादी 1,14,254 थी, जिसमें से पुरुष 60,238 और महिलाएं 54,016 थीं। साक्षरता दर 72.63 प्रतिशत थी।


चंदौसी में क्यों रखा जाता है 'गेट' पर मोहल्लों का नाम, जानिए कारण


यूपी के संभल जिले का मुगलों के समय से अपना इतिहास रहा है. जनपद के चंदौसी में ज्यादातार मोहल्लों के नाम गेट पर रखे गए हैं. जैसे सीकरी गेट, कैथल गेट, संभल गेट, जराई गेट आदि. आखिर इन गेटों के पीछे का इतिहास क्या है ईटीवी भारत ने जानने की कोशिश की.


संभल: जनपद के चंदौसी में ज्यादातर मोहल्लों के नाम गेट के ऊपर रखे गए हैं जैसे सीकरी गेट, कैथल गेट, इन गेट के ऊपर रखे गए नाम के पीछे क्या कारण है. इसे जानने की कोशिश ईटीवी भारत ने. संभल की चंदौसी तहसील का बहुत पुराना ऐतिहासिक अस्तित्व है. अंग्रेजों के समय से यह जगह व्यापार के लिए उपयुक्त थी.


चंदौसी में देसी घी की बहुत बड़ी मंडी लगा करती थी. यहां के देसी घी की मांग अमेरिका तक थी. यहां कपास की भी खेती हुआ करती थी. यहां बहुत से व्यापार होते थे. जनपद संभल के चंदौसी में खास बात यह है कि यहां हर दूसरे मोहल्ले का नाम गेट के ऊपर है. इस तरह पूरे चंदौसी में 9 मोहल्लों के नाम गेट के ऊपर ही है.जानकारी देते इतिहासकार तुमुल विजय.गेट के ऊपर नाम रखने का है पुराना इतिहासवर्ष 1757 में रोहिल्ला शासक अली मोहम्मद खां के कोषाध्यक्ष दौलत शाह ने चंदौसी की चारदीवारी करवाई और इसके अंदर 9 बनवाए थे. दौलत शाह को चंदौसी की स्थिति काफी पसंद आई थी. उन्होंने नगर के आर्थिक महत्व को अच्छी तरह से समझा था. जिसके चलते नगरी का आरंभिक विकास हुआ. उसने नगर को चारों ओर से घेरते हुए परकोटा बनवाया. जिसमें 8 दरवाजे और नवी घटिया थी. उनके नाम सीकरी गेट, कैथल गेट, खुर्जा गेट ,जराई गेट, खेड़ा दरवाजा, घटलेश्वर गेट, संभल गेट, मुरादाबाद गेट रखे गए. रोहल्लो के शासन काल में इन दरवाजों पर सुदृढ़ फाटक भी लगे थे जो रात में बंद कर दिए जाते थे.दरवाजों के दोनों ओर चौकसी के उद्देश्य ऊंची-ऊंची प्रहरी छतरिया भी बनी थी. धीरे-धीरे यह गेट अपना अस्तित्व खोते गए. अब केवल गौशाला मार्ग पर एक बाग में एक छतरी का अवशेष बाकी है. इन सभी गेटों के नाम नगर पालिका परिषद चंदौसी के रिकॉर्ड में भी दर्ज है. वरिष्ठ इतिहासकार और चंदौसी के निवासी तुमुल विजय बताते हैं कि चंदौसी का अस्तित्व बहुत पुराना है. व्यापारिक और आर्थिक दृष्टि से चंदौसी हमेशा ही मुगलों और अंग्रेजों के शासन काल से ही पहली पसंद रही है.




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