व्यावसायिक अथवा व्यापारिक पत्र व्यवहार
व्यावसायिक अथवा व्यापारिक पत्र व्यवहार
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व्यापारिक पत्र का अर्थ (Meaning of Business Letters)
व्यापारिक पत्र की परिभाषाएँ (Definitions of Business Letters)
व्यापारिक पत्रों के विभिन्न रूप (Various Kinds of Business Letters)
व्यापारिक पत्र के कार्य (Functions of Business Letters)
व्यापारिक पत्र-व्यवहार के उद्देश्य (Objects of Business Correspondence)
प्रभावी व्यापारिक पत्र-व्यवहार के मूल तत्त्व (Elements of an Impressive Business Correspondence)
व्यापारिक पत्रों की उपयोगिता एवं महत्व (Utility and Importance of Business Letters)
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1. व्यापारिक पत्र का अर्थ (Meaning of Business Letters):
व्यापारिक पत्र-व्यवहार आधुनिक वाणिज्य की आत्मा है । बिना व्यापारिक पत्र-व्यवहार के वाणिज्य का विकास होना सम्भव नहीं है । दो व्यापारी जो एक-दूसरे से हजारों किलोमीटर दूर बैठे हैं, उनमें सम्पर्क कराने का कार्य प्राय: व्यापारिक पत्र ही करते है जिनके आधार पर वस्तुओं का व्यापार होता है इस प्रकार व्यापारिक पत्र किन्हीं दो व्यापारियों के मध्य किसी व्यापारिक आर्य हेतु लिखे जाते हैं ।
व्यापार की सफलता बहुत कुछ व्यापारिक पत्रों पर ही निर्भर करती है यदि व्यापारिक पत्र विधिवत् रूप में लिखा जाये तो इसमें सन्देह नहीं कि यह एक ‘दूत’ का काम न करे व्यापारिक पत्र-व्यवहार से व्यावसायिक सफलता उच्च शिखर पर पहुँच सकती है क्योंकि इसमें व्यापार बढ़ाने, साख बढ़ाने तथा परिचय वृद्धि की क्षमता निहित होती है ।
2. व्यापारिक पत्र की परिभाषाएँ (Definitions of Business Letters):
श्री ए.पी. स्टोव (Shri A.P. Stove) ने लिखा है कि:
”आपका पत्र किसी बिक्री के होने या न होने का निर्णय कर सकता है, किसी शिकायत को दूर कर सकता है, कोई ग्राहक बना सकता है या तोड़ सकता है ।”
व्यापारिक पत्र को परिभाषित करते हुए एक विद्वान् ने लिखा है कि:
“एक श्रेष्ठ व्यापारिक पत्र लेखक का प्रतिनिधि होता है ।” एक अच्छा व्यापारिक पत्र लेखक के व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करता है एवं पढ़ने वाले पर गहरी छाप छोड़ता है ।
एक अन्य विद्वान् के शब्दों में:
”एक व्यापारिक पत्र टाइप की हुई वार्ता है ।” (A Business letter is a typed out talk.) जिस प्रकार विधिवत् ढंग से वार्तालाप न करने पर वह प्रभावोत्पादक नहीं होता, ठीक उसी प्रकार अनियोजित ढंग से किया गया पत्र-व्यवहार लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकता । अत: वार्तालाप की तरह ही पत्र-व्यवहार भी एक कला है ।
3. व्यापारिक पत्रों के विभिन्न रूप (Various Kinds of Business Letters):
व्यापारिक पत्रों के विभिन्न रूप इस प्रकार हैं:
(i) पूछताछ, आदेश व माल प्राप्ति के स्वीकृति पत्र,
(ii) सन्दर्भ सम्बन्धी पत्र अर्थात् ग्राहक की आर्थिक स्थिति की जांच-पड़ताल व उनके उत्तर,
(iii) दोषयुक्त माल प्राप्ति के सम्बन्ध में शिकायत व दावा सम्बन्धी पत्र,
(iv) परिपत्र अथवा गश्ती पत्र अथवा तकादे के पत्र,
(v) भुगतान प्राप्त करने के लिए पत्र
(vi) अनुगमन पत्र,
(vii) रिक्त स्थान के लिए आवेदन-पत्र तथा नियुक्ति सम्बन्धी पत्र, एवं
(viii) एजेन्सी के लिए पत्र ।
परीक्षा में पत्र लिखते समय ध्यान देने योग्य विशेष बातें:
(i) प्रश्न-पत्र में यदि फर्म का नाम, पता इत्यादि दिया हो तो पत्र उसी के आधार पर लिखा जाना चाहिए । यदि पता न दिया हो तो भी उसे लिखना चाहिए ।
(ii) प्रश्न में यदि टेलीफोन नम्बर, कोड संख्या, तार का पता, फैक्स नम्बर, तिथि, पत्र संख्या इत्यादि न भी दिये हों तो भी उन्हें अपनी ओर से लिख देना चाहिए ।
(iii) पत्र में कोई-सी पत्र संख्या अपनी ओर से दे देनी चाहिए ।
(iv) पत्र में पत्र का विषय, जिस विषय से सम्बन्धित पत्र लिख जा रहा है, उसे अवश्य दे देना चाहिए ।
(v) फर्म का नाम इत्यादि मोटे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए ।
(vi) पत्र को स्पष्ट, सरल अक्षरों में तथा संक्षिप्त रूप में लिखना चाहिए ।
(vii) पत्र में भेजने तथा पाने वाले का पता दिया है तो उसे, यदि नहीं दिया है तो अपनी ओर से, अवश्य लिखना चाहिए ।
(viii) पत्र में कोई कटिंग इत्यादि नहीं करनी चाहिए । जहाँ तक सम्भव हो, पत्र सुलेख में लिखा जाना चाहिए ।
(ix) व्यापारिक पत्र में किसी भी प्रकार की कोई व्यक्तिगत बात नहीं लिखी जानी चाहिए ।
4. व्यापारिक पत्र के कार्य (Functions of Business Letters):
एक अच्छा व्यापारिक पत्र ‘लेखक का प्रतिनिधि’ होता है जो उसके व्यक्तित्व को दर्शाता है । वास्तव में, व्यापारिक पत्र ‘टाइप की वार्ता’ (Typed Talk) होती है । जिस तरह वार्ता करना एक कला होती है, उसी तरह पत्र-व्यवहार भी एक कला है । यदि वार्तालाप तरीके से व सावधानीपूर्वक न किया जाये तो वह प्रभावोत्पादक नहीं होता, ठीक उसी प्रकार असावधानीपूर्वक या अनियोजित ढंग से किया गया पत्र-व्यवहार अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाता ।
श्री ए. पी. स्टोव के शब्दों में:
”आपका पत्र किसी विक्रय के होने या न होने का निर्णय कर सकता हे; किसी शिकायत को दूर कर सकता है, ग्राहक बना या तोड़ सकता है …।”
इस सम्बन्ध में जॉन. बी. ऑपडिक (John B. Opdycke) ने ‘मैं’ पत्र हूँ नामक शीर्षक के अन्तर्गत एक पत्र के निम्न बीस कार्य बताये हैं:
‘मैं’ पत्र हूँ’ । (I am the Letter.)
(1) मैं पत्र हूँ ।
(2) मैं महान् प्रसन्नता का वाहक हूँ ।
(3) मैं किसी देश की संस्कृति का प्रतीक हूँ ।
(4) मैं वाणिज्य का हरकारा हूँ ।
(5) मैं उत्पादन का दूत हूँ ।
(6) मैं उद्योग का दूत हूँ ।
(7) मैं व्यापार का दूत हूँ ।
(8) मैं वित्त का पूर्ण सत्ताधारी दूत हूँ ।
(9) मैं कामदेव का भार साधक दूत हूँ ।
(10) मैं महत्त्वपूर्ण मानवीय विचारों का पुजारी हूँ ।
(11) मैं स्वप्न-दृष्टा तथा कार्यकर्ता, कृषक तथा सम्राट, साधु तथा मिथ्यावादी सभी का वाहक हूँ ।
(12) मैं प्रत्येक महत्त्वपूर्ण कार्य की प्रेरक शक्ति हूँ ।
(13) मैं पृथ्वी पर स्थित अथाह सागरों को पार करने में ‘शक्ति’ का कार्य करता हूँ ।
(14) मैं स्वर्ग के वातावरण को निखारने वाला अमर तत्त्व हूँ ।
(15) मैं समस्त सेनाओं का प्रधान हूँ ।
(16) मैं राष्ट्रों की मुक्ति का साधन हूँ ।
(17) मैं मानवीय जीवन की समृद्धि का साधन हूँ ।
(18) मैं मानवीय प्रेम को अधिक ज्योति प्रदान करने वाला हूँ ।
(19) मैं वृहत् व्यापार की आत्मा हूँ ।
(20) मैं आयात व्यापार का वाहक हूँ ।
आधुनिक प्रगतिशील वैज्ञानिक एवं प्रतिस्पर्द्धात्मक युग में व्यावसायिक पत्र-व्यवहार केवल बिक्री का साधन मात्र ही नहीं रह गया, वरन् इसके अतिरिक्त भी इसके निम्न तीन महत्वपूर्ण कार्य माने जाते हैं:
(i) लिखित एवं प्रमाणार्थ कार्य:
व्यापार में प्राय: प्रत्येक लेन-देन पत्रों के माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं । पत्रों को भविष्य में प्रमाणार्थ संभालकर रख लिया जाता है क्योंकि ये लिखित होते हैं । अत: किसी बात के क जाने या उसमें त्रुटि हो जाने की सम्भावना बहुत कम रह जाती है । पत्र-व्यवहार भविष्य में किसी विवाद की दशा में प्रमाणस्वरूप भी कार्य करते है । व्यापारिक पत्र-व्यवहार का यह कार्य व्यवसाय के कुशल एवं त्रुटिरहित संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ।
(ii) व्यापार को प्रोत्साहित एवं विकसित करना:
व्यवसाय की स्थापना से सम्बन्धित कार्यों के करने से लेकर उत्पादन विक्रय, प्रबन्ध, वितरण, मूल्य प्राप्ति आदि सभी कार्य पत्र-व्यवहार के माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं । अत: व्यापारिक पत्र-व्यवहार आज न केवल व्यापार को एवं व्यापार के प्रति मनुष्यों को प्रोत्साहित करने का कुशल कार्य करता है अपितु किसी भी व्यवहार के विकास का साधन है ।
(iii) व्यावसायिक साख का निर्माण:
व्यावसायिक साख का निर्माण किसी व्यवसाय के विकास के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि भवन की मजबूती के लिए लोहा या सीमेण्ट । क्रेता के आदेश को पूरा करते हुए पत्र लिखना, भविष्य के लिए किसी योजना को प्रस्तुत करने के लिए पत्र लिखना भुगतान प्राप्त करने के लिए पत्र लिखना एवं अनेक व्यावसायिक अवसरों पर पत्र लिखना ताकि व्यवसाय की ख्याति बड़े और यही व्यावसायिक ख्याति का पत्र-व्यवहार के द्वारा निर्माण करना कहलाता है ।
5. व्यापारिक पत्र-व्यवहार के उद्देश्य (Objects of Business Correspondence):
एक श्रेष्ठ व्यापारिक पत्र निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करता है:
(1) विक्रय के आधार के साथ-साथ विक्रय को प्रोत्साहित करना,
(2) नये ग्राहकों से सम्पर्क का आधार प्रस्तुत करना,
(3) पुराने एवं खोये हुए ग्राहकों को पुन: मिलाना,
(4) पूर्व-स्थापित व्यापारिक सम्बन्ध फिर से स्थापित करना
(5) विक्रय हेतु पूर्व-भूमिका तैयार करना,
(6) व्यापारियों के लिए प्रेरणा-स्रोत होना,
(7) व्यावसायिक साख का निर्माण करना,
(8) डूबे हुए ऋणों की वसूली में सहायक होना,
(9) शिकायतों का उचित समाधान करना,
(10) व्यवसाय के प्रति रुचि उत्पन्न करना,
(11) नये-नये बाजारों को खोजना,
(12) ऋणों की वसूली में सहायक होना, एवं
(13) प्रचारक विक्रेताओं (Touring Salesman) के कार्य को आसान बनाना ।
6. प्रभावी व्यापारिक पत्र-व्यवहार के मूल तत्त्व (Elements of an Impressive Business Correspondence):
एक प्रभावी व्यापारिक पत्र-व्यवहार के अग्रलिखित मूल तत्त्व हैं:
(1) आपका लिखा पत्र आपके दूत का काम करता है और एक अच्छा दूत आपके व्यवसाय को बढ़ाने की गारण्टी करता है ।
(2) पत्र पाने वाले की भावनाओं को ध्यान में रखकर ऐसी शैली व भाषा में लिया होना चाहिए जिससे प्राप्तकर्त्ता सन्तुष्ट हो सके ।
(3) पत्र का प्रत्येक वाक्य व शब्द इतना स्पष्ट होना चाहिए कि सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी उसे समझ सके ।
(4) डॉ. रॉबर्ट रे के अनुसार- “जिस प्रकार एक सज्जन व्यक्ति के लिए सदाचार की आवश्यकता होती है उसी प्रकार एक व्यापारी के लिए एत्र-व्यवहार में शुद्धता जरूरी है ।”
(5) पत्र लिखते समय संक्षिप्तता के साथ-साथ पूर्णता व शुद्धता को नहीं भुला देना चाहिए ।
(6) पत्र पूर्णत: सुलिखित होने के साथ-साथ सुटाइप एवं सुव्यवस्थित भी होना चाहिए ।
(7) पत्र-व्यवहार में दिए गए समस्त आश्वासनों के कानूनी महत्त्व को नहीं भूलना चाहिए ।
(8) पत्र लिखते समय पत्र के बाह्य रूप से सम्बन्धित बातों; जैसे- पत्र का कागज, लिफाफा, टाइप इत्यादि को भी नहीं भूलना चाहिए ।
7. व्यापारिक पत्रों की उपयोगिता एवं महत्व (Utility and Importance of Business Letters):
व्यापारिक पत्र-व्यवहार की उपयोगिता एवं महत्त्व को स्पष्ट करते हुए पत्र-व्यवहार के प्रकाण्ड पण्डित श्री हरबर्ट कैसन लिखते है कि,
“प्रत्येक बाहर जाने वाला पत्र आपकी फर्म का प्रतिनिधि (भ्रमणकर्त्ता) है । यह विक्रय प्रतिनिधि है । यह एक सन्देशवाहक होता है, यह मौन तो होता है परन्तु वाक्शक्तिहीन नहीं । यह मोहित भी करता है और विमोहित भी । यह फर्म की ख्याति के निर्माण में सहायक होता है ।”
एक अन्य विद्वान् के अनुसार:
“एक व्यापारिक पत्र टाइप की हुई वार्ता है अर्थात् पत्र-व्यवहार भी ठीक उसी प्रकार एक कला है जिस प्रकार वार्तालाप करना एक कला है यदि वार्तालाय सन्तुलित नहीं है तो वह प्रभावपूर्ण नहीं होगा, उसी प्रकार अनियमित एवं अनाकर्षक ढंग से लिखा गया पत्र भी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता ।”
व्यावसायिक पत्राचार के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचारों का अध्ययन करने के उपरान्त इसके महत्त्व के सम्बन्ध में निम्न महत्त्वपूर्ण तथ्य दृष्टिगोचर होते हैं जिन्हें इसके लाभों के रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है:
(1) पत्र-व्यवहार व्यवसाय के विकास में सहायक:
एक व्यवसायी को व्यावसायिक सम्पर्क बनाये रखने एवं व्यवसाय का विकास करने के लिए व्यक्तिगत सम्पर्क के साथ-साथ पत्र-व्यवहार पर भी आश्रित रहना पड़ता है ।
(2) पत्र-व्यवहार व्यवसाय प्रभावपूर्ण होता है:
सुनियोजित एवं आकर्षक रूप में लिखा गया पत्र किन्हीं दशाओं में व्यक्तिगत सम्पर्क से भी अधिक प्रभावपूर्ण होता है । यही कारण है कि पत्र-व्यवहार को व्यवसाय की आत्मा कहा जाता है ।
(3) पत्र-व्यवहार मितव्ययी होता है:
पत्र-व्यवहार संचार के साधनों-तार, टेलीफोन, फैक्स की अपेक्षा मितव्ययी है ।
(4) पत्र-व्यवहार लिखित प्रमाण है:
किसी भी प्रकार का विवाद होने पर पत्र-व्यवहार लिखित प्रमाण का कार्य करता है । मौखिक वार्तालाप ऐसी स्थिति में महत्त्वहीन है ।
(5) पत्र-व्यवहार विज्ञापन का आधार है:
पत्र-व्यवहार विज्ञापन के लिए अत्यन्य लोकप्रिय एवं मितव्ययी साधन बन गया है । इसके द्वारा बिक्री को प्रोत्साहन मिलता है एवं वस्तुओं के सरल विक्रय के लिए आधार मिलता है ।
(6) नवीन सम्पर्क स्थापित करने में सहायक:
पत्रों के माध्यम से एक व्यापारी के अन्य व्यापारियों से सम्पर्क स्थापित होते हैं जिसके एक ओर तो व्यवसाय का क्षेत्र विकसित होता है तथा दूसरी ओर व्यवसाय का विकास होता है ।
(7) भावों को व्यक्त करने का आधार:
पत्र-व्यवहार भावों को व्यक्त कर सकता है अर्थात् यदि कोई विपरीत अथवा कठोर निर्णय लिया जाना है, तब उसे पत्र के माध्यम से व्यक्त करना आसान है बजाय मौखिक कहने के ।
(8) तथ्यों का स्पष्टीकरण एवं पुष्टिकरण सम्भव:
तार, टेलीफोन, फैक्स द्वारा सन्देश देना अथवा कहना जहां महंगा है, वहां हर स्थिति में सम्भव भी नहीं है । पत्र-व्यवहार के माध्यम से चाहे जितना बड़ा अथवा छोटा कथन प्रस्तुत किया जा सकता है एवं वार्तालाप की पुष्टि भी पत्र-व्यवहार से की जा सकती है ।
पत्र-व्यवहार पर सम्पूर्ण व्यवसाय रूपी भवन की आधारशिला निर्भर करती है ।
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DR. PRAVEEN KUMAR-9760480884
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