साझेदारी संलेख में लिखी जाने वाली मुख्य बाते


 Partnership Deed 

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साझेदारी संलेख में लिखी जाने वाली मुख्य बाते

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प्रश्न 3 - साझेदारी संलेख क्या है ? लेखांकन की दृष्टि से इसमें किन-किन बातों का समावेश किया जाता है ?


 साझेदारी संलेख (Partnership Deed): - साझेदारी का जन्म साझेदारों के मध्य होने वाले पारस्परिक मौखिक या लिखित अनुबन्ध से होता है। अतः साझेदारों के मध्य लिखित अथवा मौखिक रूप से होने वाला यह समझौता या अनुबन्ध ही साझेदारी संलेख कहलाता है।


साझेदारी संलेख में आने वाली मुख्य बातें (Main contents of Partnership deed)


1-फर्म का नाम व पता -  अर्थात् फर्म का क्या नाम होगा तथा इसके मुख्य कार्यालय का क्या पता होगा. यह संलेख में लिखा जाता है। 


2-साझेदारों के नाम व पते। 


3-व्यवसाय की प्रकृति अर्थात् साझेदारी संस्था किस प्रकार का व्यवसाय करेगी।


4-व्यापार आरम्भ करने की तिथि। 


5-साझेदारी की अवधि अर्थात् संलेख में यह लिखा जाता है कि साझेदारी एक निश्चित समय के लिए की जायेगी अथवा अनिश्चित समय के लिए। 


6-प्रत्येक साझेदार द्वारा लगाई जाने वाली पूँजी का उल्लेख भी साझेदारी संलेख में किया जाता है।


7- लाभ-हानि के बंटवारे का अनुपात ।


8- पूंजी पर ब्याज की व्यवस्था का प्रावधान ।


9- आहरण पर ब्याज की व्यवस्था का प्रावधान ।


10-आहरण किस सीमा तक किया जायेगा, यह भी संलेख में निश्चित कर लेना चाहिए। 


11-साझेदार द्वारा दिये गये ऋण पर ब्याज का प्रावधान क्या रहेगा इसका उल्लेख भी संलेख में कर लेना चाहिए।


12-साझेदारों के वेतन, बोनस, कमीशन सम्बन्धी क्या नियम रहेंगे इन सभी का उल्लेख भी संलेख में स्पष्ट कर देना चाहिए।


13-व्यवसाय का प्रबन्ध एवं संचालन किन-किन साझेदारों द्वारा किया जायेगा। क्या सभी साझेदार व्यवसाय के प्रबन्ध में भाग लेंगे। 


14-फर्म की लेखी पुस्तकें रखने की विधि अर्थात् कौन-सी विधि से खाते तैयार किये जायेंगे। 


15-व्यवसाय के खातों की अंकेक्षण व्यवस्था के लिए कौन-सी विधि अपनायी जायेगी, वार्षिक अंकेक्षण कराया जायेगा या चालू अंकेक्षण कराया जायेगा।


16-साझेदारों के अधिकार कर्तव्य व दायित्व पहले ही स्पष्ट रूप से संलेख में लिख देने चाहिए ताकि बाद में कोई भी साझेदार अपनी बात से मुकर न जाए। 


17-साझेदारों में मतभेद पैदा होने पर उनके निपटारे की विधि अर्थात् निपटारा बहुमत से किया जायेगा अथवा सर्वसम्मति से किया जायेगा।


18-नये साझेदार के प्रवेश की व्यवस्था सम्बन्धी नियम स्पष्ट होने चाहिए कि किन शर्तों पर नये साझेदार को प्रवेश दिया जायेगा।


19-किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर अथवा मृत्यु पर किस प्रकार से हिसाब किया जायेगा, तत्सम्बन्धी नियम भी संलेख में स्पष्ट होने चाहिए। 


20-फर्म के समापन की विधि तथा परिस्थितियाँ अर्थात् किन परिस्थितियों में फर्म का समापन किया जायेगा तथा किस प्रकार समापन किया जायेगा। 


21-किसी साझेदार के दिवालिया होने पर खातों का निपटारा लाभ-हानि अनुपात से अथवा पूँजी अनुपात से किया जायेगा इसका स्पष्टीकरण पूर्व में ही साझेदारी संलेख में कर देना चाहिए।


22-साझेदार के प्रवेश तथा अवकाश ग्रहण पर ख्याति सम्बन्धी नियम क्या रहेंगे अर्थात् ख्याति का मूल्यांकन किस आधार पर किया जायेगा। 


23-साझेदारी फर्म का पंजीयन कराया जायेगा अथवा नहीं।


24-साझेदारों में कार्य के बँटवारे सम्बन्धी नियम स्पष्ट होने चाहिए कि कौन-सा साझेदार कौन-से कार्य करेगा।


25-समय समय पर व्यवसाय की स्थिति की गणना सम्बन्धी नियम भी संलेख में स्पष्ट कर देने चाहिए कि कितने समय के अन्तराल पर व्यवसाय की स्थिति का आकलन किया जायेगा।

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