पार्षद सीमा नियम

 B. COM.

YEAR-1

SEMESTER-I

PAPER-BUSINESS ORGANISATION

OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO

पार्षद सीमा नियम 

OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO

पार्षद सीमा नियम किसे कहते हैं?

पार्षद सीमानियम कम्पनी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रलेख है। इसे कम्पनी का संविधान कहते है। इसमें कम्पनी के अधिकारो, उद्देश्यों, कार्यक्षेत्र का वर्णन किया जाता है। कंपनी को केवल वही कार्य करना चाहिए जो पार्षद सीमानियम में लिखे गये है, पार्षद सीमानियम के विपरीत किये जाने वाले कार्य अवैधानिक माने जाते है। इसे कम्पनी का चार्टर, स्मृति पत्र, स्मृति ज्ञापन, स्मारक पत्र ज्ञापन पत्र आदि भी कहा जाता है।


पार्षद सीमा नियम की परिभाषा

भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा (28) के अनुसार- ‘‘पार्षद सीमानियम से आशय कम्पनी के उस पार्षद सीमानियम से होता है जो प्रारंभ में बनाया गया था या जिसे पूर्व के नियमों या इस अधिनियम के अनुसार समय-समय पर परिवर्तित किया गया हो। ‘‘


लार्ड क्रेन्स के शब्दों में- ‘‘पार्षद सीमानियम किसी कम्पनी का चार्टर होता है और यह अधिनियम के अंतर्गत स्थापित कम्पनी के अधिकारों की सीमाओं को परिभाषित करता है।’’


न्यायाधीश चाल्र्सवर्थ के शब्दो में- ‘‘पार्षद सीमानियम कम्पनी का चार्टर है जो उसके अधिकारों की सीमाओं को परिभाषित करता है । 


उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात निष्कर्ष के रूप में पार्षद सीमानियम की परिभाषा निम्न शब्दों में प्रस्तुत की जा सकती है- ‘‘पार्षद सीमानियम कम्पनी का एक आधारभूत प्रलेख है जो इसके उद्देश्यों को परिभाषित करता है और इसके कार्यक्षेत्र एवं अधिकारों की सीमाओं को निर्धारित करता है।’’


पार्षद सीमा नियम की विशेषताएं 

पार्षद सीमानियम की परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात इसकी लक्षण प्रकट होता है-

पार्षद सीमानियम कम्पनी का आधारभूत एवं सबसे महत्वपूर्ण प्रलेख होता है इसे कम्पनी का अधिकार पत्र (चार्टर) भी कहा जाता है। 


पार्षद सीमानियम कम्पनी का एक अनिवार्य प्रलेख है, जिसे प्रत्यके प्रकार की कम्पनी को अनिवार्य रूप से तैयार कर रजिस्ट्रार के पास फाइल करना पड़ता है। 


पार्षद सीमानियम कम्पनी का नाम, प्रधान कार्यालय, उदृदेश्य, सदस्यों के दायित्व तथा अंशपंजू ी का उल्लेख होता है।. 

पार्षद सीमानियम कंपनी के अधिकारो की सीमाओं को निर्धारित करता है। पार्षद सीमानियम के अधिकार क्षेत्र के बाहर किये गये कार्य व्यर्थ होते है। 


पार्षद सीमानियम कंपनी का एक अपरिपवर्तनशील प्रलेख है जिसे केवल सीमित अवस्थाओं में ही परिवर्तित किया जा सकता है। 


यह एक सार्वजनिक प्रलेख है, अत: बाहरी व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि उसने कम्पनी से व्यवहार करने से पूर्व पार्षद सीमानियम का अध्ययन कर लिया होगा। यदि इसका उल्लंघन होता है जो उक्त अनुबंध को प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता। 

पार्षद सीमानियम बाहरी व्यक्तियों तथा कम्पनी के मध्य संबंधो एवं कार्यो का नियमन व नियंत्रण करता है।


पार्षद सीमा नियम का महत्व

वास्तव में पार्षद सीमा नियम कम्पनी की नींव है। कंपनी के जीवनकाल में इसका बहुत महत्व क्योंकि -

यह कम्पनी का अनिवार्य प्रलेख है। यह कंपनी के निर्माण का आधार होता है। 


इसके बिना कंपनी की स्थापना नहीं की जा सकती। 


यह कंपनी का कार्य क्षेत्र का निर्धारण करता है। 


इसमें कंपनी के अधिकारो का वर्णन करता है। 


इसके द्वारा जनता को कम्पनी के बारे में समस्त जानकारी दी जाती है और यह मान जाता है कि कंपनी के साथ व्यवहार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सीमानियम लिखी गयी बातों की जानकारी है। 


यह बाहरी व्यक्तियों के साथ के संबंधों का आधार होता है।

महत्वपूर्ण प्रलेख होने के कारण इसे सरलतापूर्वक परिवर्तित नहीं किया जा सकता है ।


पार्षद सीमा नियम की विषय सामग्री 

एक अंशो द्वारा सीमित कम्पनी की दशा में उसके पार्षद सीमानियम में छ: वाक्य होता है -


1. नाम वाक्य- 

यह पार्षद सीमानियम की प्रथम वाक्य है जिसमें कंपनी के नाम का उल्लेख किया जाता है। कम्पनी को अपना नाम चुनने की स्वतंत्रता होती है, किन्तु यह नाम कियी पूर्व में पंजीकृत कंपनी से मिलता जुलता या केन्द्र सरकार की दृष्टि से अवांछित नही होना चाहिए। जहां तक नाम का प्रश्न है यह व्यवसाय की प्रकृति से मिलता जुलता होना चाहिए। सार्वजनिक कंपनी को उसके नाम के साथ लिमिटेड शब्द व निजी कंपनी को प्राइवेट लिमिटेड शब्द लिखना चाहिए।


2. स्थान वाक्य- 

यह दसू रा महत्वपूर्ण वाक्य हैं. इसमें उस राज्य का नाम लिखा जाता है, जिसमें कंपनी का रजिस्टर्ड कार्यालय स्थित है. यदि समामेलन के समय पंजीकृत स्थान कम नाम देना सम्भव नहीं होता हैं तो समामेलन के तीस दिन के अंदर रजिस्ट्रार को इसकी सूचना दे दी जानी चाहिए है।


3. उद्देश्य वाक्य-  

यह पार्षद सीमानियम का सबसे महत्वपूर्ण वाक्य है। इसमें कम्पनी के उद्देश्यों का विवरण होता है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कंपनी का उद्देश्य कानूनन अथवा लोकनीति अथवा कंपनी अधिनियम के व्यवस्थाओं के विरूद्ध नहीं है। यह कम्पनी के कार्य़क्षेत्र की सीमा भी निर्धारित करता है जिसके बाहर कम्पनी कोर्इ भी कार्य नहीं कर सकती। उद्देश्य वाक्य को दो भागों में बांटा जा सकता है -


मुख्य उद्देश्य- इसके अंतर्गत उन सभी मुख्य एवं प्रासंगिक या सहाय उद्देश्यों को शामिल किया जाता है जिसके लिए कंपनी का समामेलन किया जाता है। 


अन्य उद्देश्य- इसमें उन उद्देश्यों को शामिल किया जाता है जो मुख्य उद्देश्य में तो शामिल नही, परन्तु कम्पनी उनकी प्राप्ति के लिये भविष्य में अपनी आवश्यकतानुसार कार्य प्रारम्भ कर सकती है। 


4. दायित्व वाक्य- 

यह कम्पनी के सदस्यों के दायित्वों की व्याख्या करता है। प्रत्येक सीमित दायित्व वाली कंपनी को अपने पार्षद सीमानियम में यह आवश्यक लिखना चाहिये कि उस के सदस्यों का दायित्व सीमित है।


5. पूंजी वाक्य- 

पार्षद सीमानियम के इस वाक्य में इस बार का उल्लेख होता कि कंपनी की अधिकृत अंश पूंजी कितनी है और वह किस प्रकार के अंशो में विभाजित होगी।


6. संघ तथा हस्ताक्षर वाक्य- 

यह पार्षद सीमानियम का अंतिम वाक्य है। इसमें हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति एक कम्पनी बनाने की घोषणा करते है। इसमें निम्म बातें लिखी जाती है- ‘‘हम निम्न लिखित व्यक्ति जिनके नाम पते नीचे दिये गये है, इस पार्षद सीमानियम के आधार पर कंपनी का निर्माण करने के इच्छुक है और अपने नाम के आगे लिखे हुए अंशों का लेना स्वीकार करते है।’’ इस वाक्य के अंत में हस्ताक्षरकर्ता के नाम, पते व्यवसाय उनके द्वारा लिये जाने वाले विभिन्न प्रकार के अंशो की संख्या तथा उनके हस्ताक्षर का उल्लेख होता है। ये हस्ताक्षर साझी के द्वारा प्रमाणित होते है। पार्षद सीमानियम के इस वाक्य में सार्वजनिक कंपनी की दशा में 7 व निजी कंपनी की दशा में 2 व्यक्तियों द्वारा सीमानियम पर हस्ताक्षर किये जाते है। अथवा लाके नीति अथवा कपंनी अधिनियम के व्यवस्थाओं के विरूद्ध नहीं है। यह कपंनी की दशा में 2 व्यक्तियों द्वारा सीमानियम पर हस्ताक्षर किये जाते है।


पार्षद सीमानियम में परिवर्तन

साधारणत: पार्षद सीमानियम में परिवर्तन करना अत्यन्त कठिन है, किन्तु परिवर्तन अतयन्त आवश्यक हो तो-

सर्वप्रथम विषेष प्रस्ताव पास करके एवं 

केन्द्र सरकार के लिखित अनुमति लेकर न्यायालय के सहमति से ही परिवर्तन किया जा सकता है। इस परिवर्तन की सूचना रजिस्ट्रार को देना आवश्यक होती है।

OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO

DR. PRAVEEN KUMAR-9760480884

OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

PAPER-BUSINESS ORGANISATION QUESTION BANK

हिंदुस्तान जिंदाबाद था, जिंदाबाद है, और जिंदाबाद रहेगा।

What do you understand by business? Describe different types of business activities with examples.