प्रबन्ध अंकेक्षण : प्रस्तावना (MANAGEMENT-AUDIT : INTRODUCTION)

 प्रबन्ध अंकेक्षण

(MANAGEMENT AUDIT]

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प्रबन्ध अंकेक्षण : प्रस्तावना

(MANAGEMENT-AUDIT : INTRODUCTION).

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अब तक अंकेक्षक के अधिकार तथा कर्तव्य प्रमुखतः उसके तथा नियोक्ता के मध्य किये गये लिखित समझौते तक सीमित थे। कम्पनी के सम्बन्ध में ये अधिकार तथा कर्तव्य कम्पनी अधिनियम तथा न्यायालयों के निर्णयों के अनुरूप निर्धारित किये जाते रहे हैं, परन्तु अब नवीन परिप्रेक्ष्य में जो स्थिति दृष्टिगोचर हो रही है,


उसके आधार पर यह व्यवस्था बन रही है कि अंकेक्षक व्यवसाय के आन्तरिक संगठन के कार्यकलाप की जांच अधिक गहराई तथा चतुराई से करने की तैयारी के योग्य हो सके। यह सही है कि वह कम्पनी के खातों की जांच करने में यह स्पष्ट करता है कि कम्पनी का चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप बनाया गया है तथा ये कम्पनी की सही तथा उचित स्थिति को प्रकट करते हैं। वह यह सब परम्परागत पद्धति के आधार पर करता आया है।


इस प्रकार वैधानिक अंकेक्षक से यह आशा नहीं की जाती है कि वह प्रबन्ध द्वारा निर्मित नीतियों के परिपालन की जांच करे कि वे सही दिशा की ओर निर्देशित करती हैं तथा उचित रूप से अपनाई जा रही हैं अथवा नहीं। वह न कम्पनी के प्रबन्ध को यह परामर्श देने की स्थिति में होता है कि किस प्रकार उसके लाभ अधिकतम हो सकते हैं और सामग्री, आदि का दुरुपयोग कैसे कम किया जा सकता है। यह बताना उसका वैधानिक अधिकार नहीं है कि व्यापार के संचालन में सुधार कैसे किये जा सकते हैं तथा अच्छे परिणाम किस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं।


प्रायः यह कहा जाता है कि आन्तरिक अंकेक्षक (Internal Auditor) ये सभी कार्य कर सकता है, पर व्यवहार में वह केवल वित्तीय मामलों की जांच से सम्बन्ध रखता है और उसका कार्य धन व माल के गबन तथा त्रुटियों के रोकने व पता लगाने तक ही सीमित रहता है। वित्तीय अंकेक्षण में प्रबन्ध अंकेक्षण नहीं आ सकता, क्योंकि प्रबन्ध अंकेक्षण वित्तीय हानि को होने से पूर्व रोक सकता है, जबकि वित्तीय अंकेक्षण केवल यह व्यवस्था दे सकता है कि हानि वास्तव में हुई है।


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प्रबन्ध अंकेक्षण की आवश्यकता

(NEED OF MANAGEMENT AUDIT)

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आज व्यवसाय की प्रक्रिया इतनी जटिल तथा बड़ी हो गयी है कि संगठन के अकुशल एवं निष्प्रभावी होने से संगठनीय ढांचे में आधारभूत कमियां व दोष उत्पन्न हो जाते हैं। व्यावसायिक लेखापालों (Professional Accountant) की फमें अब प्रबन्ध परामर्श सेवाएं (Management Consultancy Services) देने में अपना योगदान करने लगी हैं ताकि संगठन की प्रक्रिया में सुधार किया जा सके। प्रबन्धकीय परामर्श सेवाओं के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कार्य सन्तोषजनक होगा। ये सिफारिशें करके अपना कार्य। पूरा करती हैं।


इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण एक नयी विचारधारा है और यह परम्परागत अंकेक्षण से पृथक् व्यवस्था है। एक प्रकार से यह प्रबन्ध के विभिन्न पहलुओं का वास्तव में आलोचनात्मक पुनर्मूल्यांकन है। इसका सम्बन्ध प्रबन्ध की कुशलता के मूल्यांकन से है। यह नवीन दृष्टिकोण है और इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण आन्तरिक अंकेक्षण (Internal audit) का विस्तार-मात्र कहा जा सकता है।


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प्रबन्ध अंकेक्षण की परिभाषा

(DEFINITION OF MANAGEMENT AUDIT)

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(1) टी. जी. टोखे के अनसार “प्रबन्ध अंकेक्षण प्रबन्ध प्रक्रिया के सभी पहलओं का गहन आलोचनात्मक अध्ययन है।”


(2) विलियम पी. लैओनार्ड के अनुसार “प्रबन्ध अंकेक्षण कम्पनी, सरकार की संस्था या शाखा, अथवा उसके किसी अंग जैसे भाग या विभाग तथा उसकी योजनाएं व उद्देश्य, इसकी क्रियाओं के साधन एवं मानवीय व भौतिक सुविधाओं के उपयोग की एक गहन तथा रचनात्मक जांच है।”


इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रबन्ध अंकेक्षण सम्पूर्ण प्रबन्ध-प्रक्रिया से सम्बन्ध रखता है। यह बाहरी क्षेत्र तथा व्यवसाय की आन्तरिक कार्यकुशलता में प्रभावशाली सम्बन्ध बनाये जाने में सहायक होता है।


कुछ अन्य परिभाषाएं निम्न हैं :


(3) लैस्ली आर. हॉवर्ड के अनुसार “प्रबन्ध अंकेक्षण यह सुनिश्चित करने की कि सम्पूर्ण प्रबन्ध सुदृढ़ है, एक व्यवसाय का ऊपर से नीचे तक किया गया अनुसन्धान है ताकि अत्यधिक कुशल व सरलीकृत संगठन का बाहरी जगत से अधिकतम प्रभावशाली सम्बन्ध स्थापित किया जा सके।


(4) टेलर व पैरी के अनुसार “प्रबन्ध अंकेक्षण संगठन के सभी स्तरों पर प्रबन्ध की कुशलता के मूल्यांकन की एक पद्धति है तथा प्रमुखतः यह उच्च स्तरीय कार्यकारी स्तर से नीचे तक स्वतन्त्र संस्था के द्वारा की गयी व्यवसाय की जांच है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संस्था में पूर्णतया सुदृढ़ प्रबन्ध है तथा कार्यकुशलता के सम्बन्ध में वह अपना प्रतिवेदन दे सके अथवा विपरीत स्थिति में सिफारिश कर सके जिससे प्रभावशीलता स्थापित की जा सके।


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निष्कर्ष (CONCLUSION)

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उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि प्रबन्ध अंकेक्षण भौतिक सुविधाओं के उपयोग, नीतियों, उद्देश्यों, क्रियाओं के माध्यम की जांच तथा मूल्यांकन है। इससे प्रबन्ध की नीतियों तथा कार्यों का पुनर्मूल्यांकन होता है। यह सामान्यतः क्रियाओं के प्रोत्साहन की प्रक्रिया है ताकि भविष्य में ये क्रियाएं उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रभावी बन सकें जिनके लिए संस्था की स्थापना की गयी थी।


कुछ विद्वानों ने ‘निपुणता अंकेक्षण’ तथा प्रबन्ध अंकेक्षण’ को पर्यायवाची बतलाया है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि ‘प्रबन्ध अंकेक्षण’ किसी व्यवसाय के प्रबन्ध के कार्यकलाप की जांच करने की विधि है। प्रबन्ध की सफलता के लिए कुशलता में सुधार तथा संस्था के संसाधनों का अधिकतम उपयोग आधारभूत मापदण्ड होते हैं। इस कार्यकलाप के विभिन्न क्षेत्र होते हैं जैसे उत्पादन, विपणन, वित्त, क्रय व विक्रय, कर्मचारी-सेवा. अनुसन्धान तथा विकास। इसके बावजूद प्रबन्ध अंकेक्षण की परिभाषा अन्य प्रगतिशील व आधुनिक परिभाषाओं के साथ ही विचार की जानी चाहिए। प्रबन्ध अंकेक्षण के विषय में दृष्टिकोणों में पर्याप्त भिन्नताएं हैं।


पहले प्रबन्ध अंकेक्षण की व्यवस्था का अर्थ आन्तरिक अंकेक्षण समझा जाता था जो इस अंकेक्षण में पयाप्त रूप से सहायक होता है। इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण व आन्तरिक अंकेक्षण एक-दूसरे के पर्यायवाची समझे जाते थे। स्पष्ट शब्दों में प्रबन्ध के कार्यकलाप का मूल्यांकन ही प्रबन्ध अंकेक्षण है, चाहे यह कार्यकलाप वित्त व्यवस्था से सम्बन्धित हो या अन्य कार्यों से। प्रबन्ध अंकेक्षक को प्रबन्ध की सर्वागीण भूमिका की जांच करनी होती है और यह रिपोर्ट देनी होती है कि पूर्व निर्धारित लक्ष्य तथा उद्देश्य प्राप्त कर लिये है अथवा नहीं। वह प्रबन्ध के कार्यकलाप को निष्पक्ष दृष्टि से देखता है। प्रबन्ध अंकेक्षण एक ऐच्छिक व्यवस्था होती है।


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प्रबंध अंकेक्षण के कार्य

FUNCTIONS OF MANAGEMENT AUDIT

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प्रबन्ध अंकेक्षण प्रबन्ध की प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। इसमें सामान्यतः निम्न कार्य सन्निहित हैं


1 संगठन के उद्देश्यों की पहचान संगठन के उद्देश्य कभी-कभी स्पष्टतः वर्णित होते हैं, पर अधिकांशतः ये उद्देश्य अस्पष्ट रहते हैं जिनकी पूर्ण पहचान कठिनाई से हो पाती है। यह आवश्यक है।


2. उद्देश्यों, योजनाओं व लक्ष्यों में विभाजन विभिन्न क्षेत्रों के लिए लक्ष्यों तथा योजनाओं का सविस्तार संगठन के उद्देश्यों के परिप्रेक्ष्य में विभाजन किया जाना चाहिए।


3. संगठनीय ढांचे का पुनर्निरीक्षण प्रबन्ध अंकेक्षण के अन्तर्गत संगठनीय ढांचे का पुनर्निरीक्षण किया जाना चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि क्या यह उद्देश्यों तथा विस्तृत लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रभावशाली ढंग से योगदान कर सकेगा।


4. प्रत्येक कार्यात्मक क्षेत्र के क्रियाकलाप की जांच क्रियाकलाप को परिणामात्मक दृष्टि से प्रकट किया जा सकता है। इसकी लक्ष्यों तथा उद्देश्यों से भी तुलना कर लेनी चाहिए।


5. अधिक उत्तम व उपयोगी कार्यविधि का सुझाव–उपर्युक्त कार्यों के आधार पर एक से अधिक वास्तविक मार्ग की ओर सुझाव दिया जा सकता है। कर्मचारियों के लिए प्रेरणात्मक उपायों को स्वीकार करके उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है।


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प्रबन्ध अंकेक्षण के उद्देश्य

(OBJECTIVES OF MANAGEMENT AUDIT)

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(1) प्रबन्ध अंकेक्षक के द्वारा अंकेक्षित पहलूओं के दोषों व कमजोरियों को प्रकाश में लाना तथा संस्था के क्रियाकलाप में सर्वोत्तम सम्भव परिणामों के प्राप्त करने हेतु सुधारों के सम्बन्ध में सुझाव देना।


(2) व्यवसाय के सुलभ संचालन के लिए आवश्यक क्रियाओं के सर्वाधिक कुशल प्रशासन चलाने की क्षमता उत्पन्न करना।


(3) प्रबन्ध की कुशलता तथा प्रभावशीलता उपलब्ध कराना।


(4) प्रबन्ध द्वारा निर्धारित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु साधन व उपायों के लिए सुझाव देना।


(5) प्रबन्ध के सभी स्तरों पर उनके कार्यों व दायित्वों के निर्वाह के लिए सहायता करना।


(6) आन्तरिक संगठन के सफल व कुशल संचालन के लिए सर्वाधिक उत्तम व्यवस्था करना तथा उसका बाहरी संसार से प्रभावशाली सम्बन्ध बनाने में सहयोग उपलब्ध करवाना।


(7) इनपुट (inputs) तथा आउटपुट (outputs) के तालमेल के माध्यम से उपलब्धि का मूल्यांकन करना।


(8) प्रबन्ध की उसके कर्मचारियों के अधिकार, कर्तव्यों व दायित्वों के निर्वाह में सहायता करना तथा उनसे अच्छे सम्बन्ध बनाने में सहायता करना।


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वित्तीय अंकेक्षण व प्रबन्ध अंकेक्षण में अन्तर

(DISTINCTION BETWEEN FINANCIAL AUDIT AND MANAGEMENT AUDIT)

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वित्तीय अंकेक्षण बनाम प्रबन्ध अंकेक्षण

1 इसका प्रमुख सम्बन्ध पिछले लेखों विशेषतः वित्तीय प्रबन्ध अंकेक्षण का मुख्य सम्बन्ध प्रबन्ध की नीतियों लेखों की जांच से है। यह एक प्रकार से वित्तीय अकेंशण है । प्रबन्ध अंकेक्षण का मुख्य सम्बन्ध प्रबन्ध की नीतियों तथा कार्यों का मूल्यांकन करना है।


2 वित्तीय अंकेक्षक संगठन की वित्तीय स्थिति पर अपनी रिपोर्ट पेश करता है कि वित्तीय विवरण कम्पनी के कार्यकलाप का सही व उचित चित्र प्रस्तुत करते हैं। प्रबन्ध अंकेक्षक एक निश्चित अवधि के लिए प्रबन्ध के कार्यों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है तथा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक उपयों के सम्बन्ध में सुझाव

देता है।


3 वित्तीय अंकेक्षण का प्रबन्ध के कार्यकलाप से कोई प्रबन्ध सम्बन्ध नहीं है । प्रबन्ध अंकेक्षण का सम्बन्ध प्रबन्ध के कार्यों को अधिक कुशल तथा प्रभावी बनाने से है।

4 इसका क्षेत्र वित्तीय लेखों की जांच करने तक सीमित हैं । प्रबन्ध अंकेक्षण का क्षेत्र प्रबन्ध का कार्यक्षेत्र होता है।

 

5 यह वित्तीय लेखों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करके समाप्त हो जाता है । प्रबन्ध अंकेक्षक का कार्य वहां प्रारम्भ होता है, जहां जाता है।

वैधानिक अंकेक्षक का कार्य समाप्त होता है।


6 यह संगठन के वित्तीय पहलू से सम्बन्ध रखता है। इसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्य, योजनाएं, नीतियां, उत्पादन व वितरण का नियोजन और उसके लिए आवश्यक समग्र कुशलता के विश्लेषणात्मक अध्ययन का समावेश होता है।


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प्रबन्ध अंकेक्षण व लागत अंकेक्षण

(MANAGEMENT AUDIT AND COST AUDIT)

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वित्तीय अंकेक्षण की भांति लागत अंकेक्षण एक नियमित प्रक्रिया है। वित्तीय अंकेक्षण तथा लागत अंकेक्षण दोनों ही किसी-न-किसी रूप में सरकारी अधिनियम से नियन्त्रित होते हैं। लागत अंकेक्षण का सम्बन्ध व्यवसाय के क्रिया-कलाप के लागत पहलू से है। इसके लागत लेखों के विश्लेषण से आगे बढ़ने की भूमिका तैयार की जाती है और मितव्ययिता में वृद्धि करने तथा दुरुपयोग रोकने के उपाय किये जाते हैं। प्रबन्ध अंकेक्षण का सम्बन्ध प्रबन्ध की नीतियों तथा उद्देश्यों के मूल्यांकन के माध्यम से प्रबन्ध के कार्यकलाप की जांच करने से होता है।


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प्रबन्ध अंकेक्षण का महत्व

(IMPORTANCE OF MANAGEMENT AUDIT)

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प्रबन्ध अंकेक्षण का महत्व इसके लाभों पर आधारित होता है। यह सही है कि प्रबन्ध अंकेक्षण के दरगामी परिणाम होते हैं। उसका सम्बन्ध संस्था के क्रियाकलाप के मूल्यांकन से है और उसके परिणाम पूर्व निर्धारित लक्ष्यों से मिलान किये जाते हैं। प्रबन्ध अकक्षण की आवश्यकता के निम्न आधार हैं


1 अनुदान (Subsidy) की प्राप्ति के लिए यह स्थायी हल नहीं है कि बीमार उद्योगों को अनुदान देकर उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार किया जाए। प्रबन्ध अंकेक्षण किये बिना अनदान देना समस्या का समाधान नहीं है। अतः अनुदान देने से पूर्व संस्था का प्रबन्ध अंकेक्षण करवाना आवश्यक होता है। आवश्यक हो तो उसके प्रबन्ध को बदलकर समस्या का हल हो सकता है।


2. ऋण देने के लिए व्यापारिक संगठन को ऋण देने से पर्व बैंक या अन्य वित्तीय संस्था प्रबन्ध अंकेक्षण करवा सकती है कि क्या इस ऋण की स्वीकति होने पर संस्था इसका सदुपयोग कर सकती है। इसके लिए कम्पनी की नीतियों, योजनाओं तथा उद्देश्यों का मल्यांकन आवश्यक होगा जो प्रबन्ध अंकेक्षण के माध्यम से सम्भव हो सकता है।


3. विदेशी सहयोग (Foreign Collaboration) के लिए कम्पनियों में धन लगाने से पूर्व प्रबन्ध अंकेक्षण आवश्यक हो जाता है ताकि इस धन के विनियोजन से उद्योग का सही दिशा में विस्तार व विकास किया। जा सके।


4. सामान्य अंश पंजी में साझेदारी के लिए किसी संस्था की साधारण अंश पूंजी (Equity Capital) में भागीदार बनने के लिए यह आवश्यक है कि प्रबन्ध अंकेक्षण करवा लिया जाए। यदि वर्तमान प्रबन्ध सक्षम नहीं है तो साधारण पंजी में भागीदार बनना हितकर नहीं होता है। अकुशल प्रबन्ध वाले उद्योगों में पूंजी की भागीदारी घातक होती है।


अतः प्रबन्ध अंकेक्षण यदि योग्य व्यक्ति के द्वारा किया जाए, एक महत्वपूर्ण यन्त्र प्रबन्ध की सक्षमता के नापने के लिए बन जाता है। प्रबन्धकीय क्रिया-कलाप का सही मूल्यांकन करना प्रबन्ध अंकेक्षण की प्रक्रिया से ही सम्भव हो सकता है। इस प्रकार सामान्यतः देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के मूल्यांकन के दृष्टिकोण से तथा विशेष रूप से परिवर्तित व्यापारिक परिस्थितियों के अनुरूप प्रबन्ध अंकेक्षण सर्वोत्तम प्रबन्ध उपकरण (Tool) माना गया है जिससे कि संस्था की कार्य पद्धति का सही परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन हो सके।


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प्रबन्ध अंकेक्षक की नियुक्ति

(APPOINTMENT OF MANAGEMENT AUDITOR)

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यह ध्यान देने योग्य है कि प्रबन्ध अंकेक्षण का प्रावधान विधान के द्वारा नहीं किया गया है, अतः कम्पनी प्रबन्ध अंकेक्षक के चयन तथा नियुक्ति के लिए अपना स्वयं का निर्णय ले सकती है। संचालक मण्डल अथवा अंशधारी चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स की फर्म को कम्पनी का प्रबन्ध अंकेक्षक नियुक्त कर सकते हैं। ऐसा निर्णय कम्पनी की परिस्थितियों पर पूर्णतया निर्भर होगा।


प्रायः तर्क दिया जाता है कि आन्तरिक अंकेक्षक (Internal auditor) ही प्रबन्ध अंकेक्षण करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति होता है, क्योंकि वह कम्पनी की गतिविधियों तथा कार्यकलाप से पूर्ण परिचित होता है। यह भी सुझाव दिया जाता है कि प्रबन्ध अंकेक्षण के कार्य को संगठन व विधि (Organisation and Methods Study-0. M.) विभाग के कर्मचारियों के सुपुर्द कर देना चाहिए जिनका मस्तिष्क विश्लेषणात्मक होता है और जो कम्पनी के संगठनीय ढांचे तथा क्रियाओं की विधियों का ज्ञान रखते हैं। यह सब प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर तो निर्भर होगा ही, पर यहां यह ध्यान देने योग्य है कि प्रबन्ध अंकेक्षण करने के लिए तकनीकी ज्ञान व कुशलता की अधिक आवश्यकता होती है।


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DR. PRAVEEN KUMAR-9760480884

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