व्यवसाय के विकास की प्रक्रिया

  व्यवसाय के विकास की प्रक्रिया

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आदिम मानव अपनी उदरपूर्ति जंगली जानवरों के शिकार एवं वनोत्पादों से करता था। मानव घुमक्कड़ था। धीरे-धीरे मानव के बौद्धिक विकास के कारण वह उपयोगी जानवरों को पालने लगा। पशुओं की चारे की पूर्ति के लिए वह ऋतु-प्रवास करने लगा। मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति पशु उत्पादों से होने लगी। कृषि ने मानव को स्थायीकरण के लिए प्रेरित किया।


पुनर्जागरण काल में खोज, अन्वेषण व तकनीकी विकास के साथ ही आर्थिक विकास ने गति पकड़ी। 18 वीं सदी में जीवाश्म ईंधन की खोज के बाद विश्व में खनन व उद्योग जैसी आर्थिक गतिविधियों का विस्तार हुआ। मानव के व्यवसायों के विकास का एक क्रम पाया जाता है। इस विकास क्रम को काल के अनुसार निम्न प्रकार से बाँटा जा सकता है –


1. प्रागैतिहासिक काल

2. प्राचीन काल

3. मध्य काल

4. आधुनिक काल।


1. प्रागैतिहासिक काल:

इस काल में मानव जंगली जानवरों का शिकार करता था तथा जंगलों से कंद-मूल, फल संग्रहण करता था। मानव जंगली अवस्था में ही रहता था। इस काल में शिकार में कुत्ता मानव का सहायक बना। धीरे-धीरे मानव उपयोगी जानवरों को पालतू बनाकर पालने लगा। जानवरों से मानव को दूध, दही, माँस, चमड़ा, हड्डियाँ आदि उपयोगी चीजें मिलने लगीं। उपयोगी पौधों के बीजों को वोकर उसने खेती करना प्रारम्भ किया। वह झूमिंग कृषि करने लगा। फसलों व पालतू जानवरों की देखभाल वे सुरक्षा के लिए टहनियों, पत्तियों व जानवरों की खालों की झोपड़ियाँ बनाकर रहने लगा। इस काल तक मानव ने मिट्टी से बर्तन बनाने की कला सीख ली थी।


2. प्राचीन काल:

इस काल में कृषि व पशुपालन जैसी आर्थिक क्रियाओं के विकास के साथ मानव के जीवन में स्थायित्व आया। उसकी प्राथमिक आवश्यकताओं की सुगमता से पूर्ति होने लगी। लोहा, ताँबा व काँसा जैसे मजबूत धातुओं की खोज की, जिससे वह उपयोगी हथियार व सामान बनाने लगा। हल व बैलों की मदद से कृषि करने लगा। फसलों को सिंचाई के रूप में पानी देना सीख लिया। इसी काल में ईसा से लगभग 2500 वर्ष पूर्व मोहनजोदड़ो व हड़प्पा सभ्यता सिंधु नदी घाटी में विकसित हुई। मिस्र के पिरामिड उस काल की तकनीकी उन्नति के सूचक हैं। इस काल में कृषि के साथ-साथ कुटीर उद्योगों का भी तेजी से विकास हुआ।


3. मध्यकाले:

600 ईस्वी से 1500 ईस्वी के बीच की अवधि को मध्यकाल के अन्तर्गत शामिल किया जाता है। इस काल में जागीरदारी व सामंतवादी प्रथा का प्रचलन था। कृषि का भी उत्तरोतर विकास होता गया। बढ़ती शिक्षा, व्यापार तथा सांस्कृतिक विकास के कारण लड़े-बड़े नगरों का विकास हुआ। व्यापार में वस्तुओं का विनिमय होता था। ग्रामीण क्षेत्रों से कृषि उत्पाद नगरों में एवं नगरों से निर्मित माल ग्रामीण क्षेत्रों में आता था। इसी काल में भारत में व्यावसायिक, कृषि, कुटीर उद्योग एवं व्यापार का सर्वाधिक विकास हुआ। भारत इस दृष्टि से विश्व का प्रतिनिधित्व करता था।


4. आधुनिक काल:

15वीं सदी से वर्तमान समय तक की अवधि को आधुनिक काल माना जाता है। इस काल में मनुष्य के व्यवस अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंच गए। तकनीकी विकास, खोज व आविष्कारों के कारण आधुनिक विकसित मानव व्यवसायों का उदय हुआ। इस काल में मानव प्राथमिक व्यवसायों की तुलना में द्वितीयक, तृतीयक, चतुर्थक व पंचम व्यवसायों से जुड़ने लगा। 19वीं शताब्दी से कृषि में उन्नत बीजी. रसायनो, कीटनाशक दवाओं व उन्नत मशीनों का उपयोग होने लगा। पशुपालन व मत्स्य व्यवसाय विस्तृत व वाणिज्यिके स्तर पर स्वचालित मशीनों द्वारा किया जाने लगा। ऊर्जा के विभिन्न साधना से ऊर्जा की प्राप्ति के कारण वृहत् स्तर पर उद्योगों में विभिन्न वस्तुओं का निर्माण होने लगा।

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